Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirtisuriji, Babu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 278
________________ पम्न चरित्र विरद गाने लगे।३१-३२। हाथी घोड़ा रथ भी उसी आकारके धारण करनेवाले हो गये। और तो क्या इसकी सेनाके सैनिकोंके नाम भी वही काम, कृष्ण, बलदेव आदि हो गये ।३३। इसप्रकारसे लड़ाई के लिये उत्सुक हुई और सब लक्षणोंसे लक्षित तथा हर्षित दोनों ओरकी सेनाको देखकर उस नगरकी स्त्रियां परस्पर इसप्रकार वार्तालाप करने लगी।३३।। पूर्णिमाके चन्द्रमाके समान मुखवाली जो एक स्त्री महलकी छत पर खड़ी थी, वह बोली, यदि यह लड़ाई यहीं शांत हो जावे, तो निश्चयपूर्वक मैं धन्य होऊँ ।३५। कोई दूसरी बोली, हे माता ! हृदय में तो ऐसा निश्चयपूर्वक प्रतिभासित होता है कि यह श्रीकृष्ण तो ग्रहग्रस्त हो गया है, जो अपनी एक स्त्रीके लिये अच्छे २ वंशोंमें उत्पन्न हुए शूरवीरों तथा राजाओंको नष्ट करनेके लिये तैयार हुआ है ।३६-३७) कोई तीसरी स्त्री कहने लगी, यह उत्कृष्ट रथमें बैठा हुआ और चँवरों तथा भाले से युक्त मेरा उत्साही पति है ।३८। कोई चौथी स्त्री अपनी सखीसे बोली, और यह शूरवीर पति मेरा है, जिसके मस्तकपर मुकुट शोभायमान हो रहा है और जो बड़ी शीघ्रतावाला है ।३९। और कोई सुन्दरी अपनी सखीसे कहने लगी, यह योद्धा, जिसके ऊपर चँवर टुरते हैं और जिसकी बन्दीजन स्तुति करते हैं मेरा प्राणप्यारा है ।४। नारियोंके इसप्रकार शुभ वचन सुनते हुए वे शूरवीर जल्द ही आगे चले । सो उनमेंसे कितने ही सिंहसरीखे शूरपुरुष तो वीरोंकी लीला करते हुये शत्रुकी सेनाके समीप जा पहुँचे, कितने ही नगरी की गलीको प्राप्त हो गये।४१-४२। और कितने ही लड़ाई के लिये उत्सुक हुए योद्धा दौड़कर शत्रुकी सेना में घुस गये। उनके साथ और भी दूसरे योद्धा प्रवेश कर गये।४३॥ यह देख प्रतिहारी अर्थात् पहरेदार राजाकी आज्ञासे उन प्रचंड बलके धारण करनेवाले योद्धावोंको रोकने लगे।४४॥ दोनों सेनाओंके हाथियोंके मनोहर घन्टा तथा काहलके उच्च शब्दोंसे चारों ओर कोलाहल Jain Educe international For Private & Personal Use Only www. brary.org

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