________________
प्रद्युम्न
चरित्र
कि, यदि आधा लड्डु, परोसती हूँ तो ये क्रोधित होंगे और पूरा परोसती हूँ, तो ये पचा नहीं सकेंगे।४।। उसे इस प्रकार उलझनमें पड़ी देखकर ब्रह्मचारी क्रोधसे लाल पीले होकर बोले, माता ! तू कंजूसीके कारण लड्ड नहीं परोसती है । इसमें जराभी सन्देह नहीं है कि, तू कंजूस है। आखिर रुक्मिणीने एक लड्ड परोस दिया। परोसनेकी देर थी कि, वे उसे पा गये और "परोस ! परोस !” इस प्रकार कहकर और मांगने लगे। रुक्मिणीने दूसरा लड्ड भी परोस दिया, सो ब्रह्मचारीने उसको भी खाकर तीसरे के लिये चिल्लाना शुरू कर दिया। इस प्रकार रुक्मिणीने वे सबके सब मोदक परोस दिये और वह उन सबको भक्षण करके "और लाओ और लाभो !" कहता गया। तब रुक्मिणी दशों लड्डू खिलाकर दूसरे घरमें भोजन ढूंढनेके लिये गई परन्तु जब कुछ न मिला, और व्याकुल होने लगी तब उसको बोला, हे माता बस, में सन्तुष्ट हो गया, अब रहने दे।४१-४३। ऐसा कह कर तथा प्राचमन करके उठ पाया और बाहर जहां रुक्मिणीने आसन बिछा दिया था, वहां श्रा बैठा ।४४। इस प्रकार प्रद्युम्नकुमार अपनी माताके धर्मानुरागकी परीक्षा करके बहुत प्रसन्न हुआ।४५।
रुक्मिणी महाराणी जिस समय उसके आगे बैठी हुई सम्यक्त्वसम्बन्धी चर्चा वार्ता कर रही थी, उस समय श्रीसीमन्धर भगवानने प्रद्युम्नकुमारके आगमनके समयके सूचित करने वाले जो चिह्न बतलाये थे वे सब प्रगट हो गये।४६-४७। महलके आगे जो सूखा हुअा अशोकका वृक्ष लगा था, वह पुष्पों और फलोंके गुच्छोंसे लद गया, गूंगे आदमी बोलने लगे, कुरूपवान सुरूपवान हो गये, कुबड़े सुडौल हो गये और अन्धे सूझते हो गये।४८-४६। सूखी हुई बावड़ी जलसे भर गई और उसमें कमल खिल गये; बगीचोंमें कोयल और मयूरोंके मनोहर शब्द होने लगे।५०। बिना समयके बसंतऋतु आ गई। पुष्प और फलोंसे लदे हुए वृक्षोंपर भौंरोंका झंकार सुन पड़ने लगा ॥५१॥ ये सब बातें रुक्मिणीके चित्तको बड़ी ही प्यारी मालूम होने लगी। हर्षित होकर उसने सोचा, ये सब लक्षण
Jain Education interational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org