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वस्त्र शिथिल हो गये थे, बाल बिखर रहे थे और कुचोंपरसे हार टूटकर झड़ रहे थे, अपने शरीरकी सुध बुध भूलकर अर्थात् कपड़े, बाल और हार न सम्हालकर प्रद्य म्नको देखनेके लिये दौड़ी।३०।। || चरित्र किसी किसीने कड़ोंको कानों में पहन लिये, किसीने कटिसूत्रको गलेमें पहन लिया, किसीने हारको कमरमें पहन लिया और मेखलाको सिरमें डाल ली, नेत्रोंमें केसर लगाली कपोलोंमें कज्जल लगा लिया। इसप्रकार विह्वल होकर अपने आपको भूलकर प्रद्युम्नको देखने दौड़ी। ठीक ही है, साक्षात् मदनके दृष्टिगोचर होनेपर योग्य अयोग्यका विचार कहां रह सकता है ? ॥२-३। कोई एक स्त्री रूप
और यौवनसे परिपूर्ण प्रद्युम्नको देखकर कामदेवके शरसे विद्ध हो गई, जिससे उसके सारे शरीरमें रोमांच हो पाया।४। इस प्रकारसे प्रद्युम्नकुमारके अानेपर नगरकी स्त्रियोंने नानाप्रकारकी चेष्टायें की। ठीक ही है, जो जीव कामकी फांसीमें फँस जाते हैं, वे क्या २ चेष्टायें नहीं करते हैं ।३०५।
इसप्रकार नगर निवासिनी स्त्रियोंको दर्शन देता हुआ प्रद्य म्नकुमार राजमहलमें पहुँचा, जहां कि, कालसंवर विराजमान थे।३०६। उसने उनके चरणकमलोंको अपने मस्तकके केशोंसे माजन करके बड़ी विनय तथा भक्ति के साथ प्रणाम किया ७। पिताने भी पुत्रका आलिंगन किया और उसके मुख तथा मस्तकको चूमा । फिर शरीरादिकी कुशलता पूछी ।। प्रद्युम्नकुमारने कहा, प्रभो ! आप के चरणकमलोंके प्रसादसे तथा आपकी कृपासे मेरी निरन्तर कुशल ही रहती है । । ऐसा कहकर और थोड़ी देर बैठकर प्रद्युम्नकुमार अपने पिताकी आज्ञा लेकर लीला करता हुआ माता मंदिर में गया ।१०। सो जननीका आलिंगन करके और चरणकमलोंको विनयपूर्वक नमस्कार करके साम्हने बैठ गया ३११। कनकमालाने भी सोलह लाभोंको प्राप्त करके आए हुए अपने श्रेष्ठपुत्रको आशीर्वाद दिया।३१२। वह कुमार सम्पूर्ण लक्षणों सहित, नवीन यौवनका धारण करने वाला, अपने यशसे संसारको व्याप्त करनेवाला, और सम्पूर्ण गुणोंका स्थान था। उमका मस्तक कोमल, काले घुघराले, तथा विस्तृत केशों
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