Book Title: Paniniya Vyakarana Tantra Artha aur Sambhashana Sandarbha Author(s): Vasantkumar Bhatt Publisher: L D Indology Ahmedabad View full book textPage 7
________________ अस्मदीयम् श्रेष्ठी श्री कस्तुरभाई लालभाई की पावन स्मृति में आयोजित इस व्याख्यान-श्रेणी में मुझे "पाणिनीय व्याकरण-तन्त्र, अर्थ और सम्भाषण सन्दर्भ" विषयक तीन व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए परम हर्ष का अनुभव हो रहा है । व्याकरण शास्त्र का अध्ययन-अध्यापन करते समय कदाचित् कोई नूतन विचार-कणिका का अनायास आविर्भाव हो जाता हैं । उसी को लेकर ये व्याख्यान तैयार किये गये हैं । पाणिनीय व्याकरण की एक 'तन्त्र' के रूप में जो आकृति हमारे मनश्चक्षु के सामने आकर दिखाई दे रही है, उस आकृति के विचार के साथ पाणिनीय-विद्वद्वन्द यदि सम्मति प्रदान करेगा तो यह परिश्रम सार्थक सिद्ध होगा । पाणिनीय व्याकरण में 'अर्थ' के सन्दर्भ में जो कुछ कहा गया है, उस में पूर्वसूरियों का यथावसर ऋण स्वीकार किया गया है । और वार्तिककार के अवदान की चर्चा भी नूतन दृष्टि से की गई है । आशा है कि विद्वानों को यह व्याख्यान उपयुक्त प्रतीत होंगें । आज मैं मेरे पाणिनीय व्याकरणशास्त्र के विद्याप्रदाता परमश्रद्धेय गुरुवर्य पं. श्री बालकृष्ण पञ्चोलीजी एवं पं. श्री चिमनलाल ज. पण्डया की पावनकारिणी स्मृति को वन्दन करता हूँ । और इस व्याख्यान श्रेणी में अध्यक्ष स्थान पर बिराजमान प्रो. डॉ. तपस्वी नान्दीजी, डॉ. भगवती प्रसाद पण्ड्याजी, एवं मेरे प्रियसुहृद् 'सखा ' डॉ. कमलेश कुमार चोक्सी को सादर प्रणामाञ्जलि देता हूँ। __इस व्याख्यान माला में मेरे पाणिनीय विषयक विचारों को अभिव्यक्त करने का मौका प्रदान करने पर डॉ. जितेन्द्रभाई शाह का में हृदय से आभारी हूँ। और साथ में प्रकाशन इत्यादि की व्यवस्था में सहयोग देकर प्रो. कानजीभाई पटेलने और युवामित्र डॉ. दीनानाथ शर्माने भी बड़ा सहकार दिया हैं । मैं इनके प्रति भी आभारी हूँ। मेरे छात्रगण को भी आज मैं साधुवाद दे कर, इस शास्त्र का संरक्षण संवर्द्धन करने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ । राष्ट्रभाषा में व्याख्यान लिखने का यह प्रथम प्रयास हैं । अतः हिन्दी भाषा की त्रुटियां के लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ | वसन्तकुमार भट्ट अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद - ३८० ००९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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