Book Title: Panchsangraha Part 06 Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan JodhpurPage 12
________________ प्रवचन, जैन उपन्यास आदि की आपश्री की पुस्तकें भी अत्यधिक लोकप्रिय हुई हैं । लगभग ६-७ हजार पृष्ठ से अधिक परिमाण में आप श्री का साहित्य आँका जाता है। शिक्षा क्षेत्र में आपश्री को दूरदर्शिता जैन समाज के लिये वरदानस्वरूप सिद्ध हुई । जिस प्रकार महामना मालवीय जी ने भारतीय शिक्षा-क्षेत्र में एक नई क्रान्ति-नया दिशादर्शन देकर कुछ अमर स्थापनाएँ की हैं, स्थानकवासी जैन समाज के शिक्षा क्षेत्र में आपको भी स्थानकवासी जगत का 'मालवीय' कह सकते हैं। लोकाशाह गुरुकूल (सादड़ी), राणावास की शिक्षा संस्थाएँ, जयतारण आदि के छात्रावास तथा अनेक स्थानों पर स्थापित पूस्तकालय, वाचनालय, प्रकाशन संस्थाएं शिक्षा और साहित्य-सेवा के क्षेत्र में आपश्री की अमर कीति गाथा गा रही हैं। लोक-सेवा के क्षेत्र में भी मरुधरकेसरी जी महाराज भामाशाह और खेमा देदराणी की शुभ परम्पराओं को जीवित रखे हुए थे। फर्क यही है कि वे स्वयं धनपति थे, अपने धन को दान देकर उन्होंने राष्ट्र एवं समाज सेवा की, आप एक अकिंचन श्रमण थे, अतः आपश्री ने धनपतियों को प्रेरणा, कर्तव्य-बोध और मार्गदर्शन देकर मरुधरा के गांवगांव, नगर-नगर में सेवाभावी संस्थाओं का, सेवात्मक प्रवृत्तियों का व्यापक जाल बिछा दिया। ___ आपश्री की उदारता की गाथा भी सैकड़ों व्यक्तियों के मुख से सुनी जा सकती है। किन्हीं भी संत, सतियों को किसी वस्तु की, उपकरण आदि की आवश्यक्ता होती तो आपश्री निःसंकोच, बिना किसी भेदभाव के उनको सहयोग प्रदान करते और अनुकूल साधन-स मग्री की व्यवस्था कराते। साथ ही जहाँ भी पधारते वहां कोई रुग्ण, असहाय, अपाहिज, जरूरतमन्द गृहस्थ भी (भले वह किसी वर्ण, समाज का हो) आपश्री के चरणों में पहुंच जाता तो आपश्री उसकी दयनीयता से द्रवित हो जाते और तत्काल समाज के समर्थ व्यक्तियों द्वारा उनकी उपयुक्त व्यवस्था करा देते । इसी कारण गांव-गांव में किसान,Page Navigation
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