Book Title: Panchsangraha Part 05 Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur View full book textPage 9
________________ गया। गुरुदेवश्री ने श्री सुराना जी को दायित्व सौंपते हुए फरमाया'मेरे शरीर का कोई भरोसा नहीं है, इस कार्य को शीघ्र सम्पन्न कर लो।' उस समय यह बात सामान्य लग रही थी, किसे ज्ञात था कि गुरुदेवश्री हमें इतनी जल्दी छोड़कर चले जायगे । किन्तु क्र र काल की विडम्बना देखिये कि ग्रन्थ का प्रकाशन चालू ही हआ था कि १७ जनवरी १९८७ को पूज्य गुरुदेव के आकस्मिक स्वर्गवास से सर्वत्र एक स्तब्धता व रिक्तता-सी छा गई । गुरुदेव का व्यापक प्रभाव समूचे संघ पर था और उनकी दिवंगति से समूचा श्रमणसंघ हो अपूरणीय क्षति अनुभव करने लगा। पूज्य गुरुदेवश्री ने जिस महाकाव्य ग्रन्थ पर इतना श्रम किया और जिसके प्रकाशन की भावना लिये ही चले गये, वह ग्रन्थ अब पूज्य गुरुदेवश्री के प्रधान शिष्य मरुधराभूषण श्री सुकनमुनि जी महाराज के मार्गदर्शन में सम्पन्न हो रहा है, यह प्रसन्नता का विषय है। श्रीयुत सुराना जी एवं श्री देवकुमार जी जैन इस ग्रन्थ के प्रकाशन-मुद्रण सम्बन्धी सभी दायित्व निभा रहे हैं और इसे शीघ्र ही पूर्ण कर पाठकों के समक्ष रखेंगे, यह दृढ़ विश्वास है। इस ग्रन्थ के प्रकाशन में श्रीमान् पुखराजजी ज्ञानचन्दजी मुणोत मूल निवासी रणसीगाँव हाल मुकाम ताम्बरम् (मद्रास) ने पूर्ण अर्थसहयोग प्रदान किया है, पहले भी भाग १ एवं ४ में आपकी ओर से सहयोग प्राप्त हुआ है । आपके अनुकरणीय सहयोग के प्रति हम सदा आभारी रहेंगे। आचार्य श्री रघुनाथ जैन शोध संस्थान अपने कार्यक्रम में इस ग्रन्थ को प्राथमिकता देकर सम्पन्न करवाने में प्रयत्नशील है। __ आशा है जिज्ञासु पाठक लाभान्वित होंगे। मन्त्री आचार्य श्री रघुनाथ जैन शोध संस्थान जोधपर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org|Page Navigation
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