Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 7
________________ दो शब्द " पपचरित और उसमें प्रतिपादित भारतीय संस्कृति" ग्रन्थ विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन द्वारा वर्ष १९७२ ई० में पी-एच. डी उपाधि हेतु स्त्रीकृत किया गया था । इस ग्रन्थ की रचना में अनेक विद्वानों की कृतियों का यत्र-तत्र उपयोग हुआ है | श्रद्धेय डॉ. पन्नालाल साहित्याचार्य द्वारा अनूदित तथा भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित पद्मनारत के प्रामाणिक संस्करण का उपयोग लेखक ने ग्रन्थ निर्माण में किया है। पूज्य गुरुवर्य पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री, डॉ० हीरालाल जी, सिद्धान्ताचार्य, डॉ० फूलचन्द्र शास्त्री, डॉ० नेमीचन्द्र शास्त्री, डॉ० दरबारीलाल कोठिया, प्रो० उदयचन्द्र जैन, प्रो० अमृतलाल शास्त्री एवं डॉ० कोमलचन्द जैन की रचनाओं अथवा सुक्षात्रों से मैं विशेष लाभान्वित हुआ । श्रद्धेय पं० जम्बू प्रसाद जी शास्त्री समय-समय पर सत्परामर्श देते रहे । शोध प्रबन्ध के निर्देशक होने के कारण डॉ हरीन्द्रभूषण जैन ( महामन्त्री भारतवर्षीय दि० जैन विद्वत्परिषद् ) एवं भूतपूर्व रोडर संस्कृत अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ) से पर्याप्त दिशा निर्देश प्राप्त होता रहा | अखिल भारतवर्षीय दि. जैन शास्त्रिपरिषद् के कर्णधार डॉ० लालबहादुर शास्त्री तथा वाणीभूषण पं० बाबूलाल जैन जमादार ने उक्त ग्रन्थ पर श्रीमान् राय साहब चांदमल पाण्ड्या पुरस्कार के अन्तर्गत १९७३ का एक सहल एक सौ एक रुपये का पुरस्कार दिलाकर लेखक का उत्साहवर्द्धन किया है । महावीर प्रेस वाराणसी के मालिक बाबूलाल जैन फागुल्ल ने समाज को अनेक प्रत्यरत्न भेंट किए हैं, इसी परम्परा में यह प्रेस में मुद्रित होकर जन साधारण के समक्ष आ रहा है । इन सब महानुभावों के प्रति मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। श्रीमान् सेठ निर्मलकुमार जी सेठी, सीतापुर इस अन्य के प्रकाशन में महासभा की ओर से अपना बार्षिक योग दान न दिलाते तो यथाशीघ्र इस ग्रन्थ का सबके समक्ष आना कठिन था, अतः मैं अ. वि. जैन महासभा तथा उसके अध्यक्ष सेठी सा के प्रति आभार व्यक्त करता है । पमान कॉलिज बिजनौर तथा जैन मन्दिर, बिजनौर के ग्रन्थागारों में उपलब्ध ग्रन्थों से मैं लाभान्वित हुआ, अतः इनके तत्कालीन पदाधिकारियों डॉ० श्रीराम त्यागी, डॉ० राजकुमार अग्रवाल एवं आदरणीय बाबू रतनलाल जैन के प्रति में अपना धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। आशा है, जन समुदाय एवं विमण्डली में इस ग्रन्थ का समादर होगा । सुन्दर मुद्रण कर ग्रन्थ भी उन्हीं के जैन मन्दिर के पास बिजनौर, उ० प्र० विद्वद्गुणानुरागी रमेशचन्द जैन

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