Book Title: Ovavaiya Suttam
Author(s): N G Suru
Publisher: N G Suru

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ Sut. 48-] औपपातिकसूत्रम् वयासी-कप्पिए ण देवाणुप्पियाणं आभिसक्के हत्थिरयणे हयगय जाव पवरजोहकलिया य चाउरंगिणी सेणा सण्णाहिया सुभद्दापमुहाणं य देवीणं बाहिरियाए उवठाणसालाए पाडियकपाडियकाई जचाभिमुहाई जुत्ताई जाणाई उवठावियाई चंपाणयरी सब्भितरबाहिरिया आसिच जाव गंध- 5 वट्टिभूया कया, तं णिज्जंतु णं देवाणुप्पिया! समणं भगवं महावीरं अभिवंदया । SUTRA 48. तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्ते बलवाउयस्स आंतए एयमहं सोच्चा णिसम्म हतुठ जाव हियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ २ ता अट्टणसालं अणुप- 10 विसइ २ ता अणेगवायामजोग्गवग्गणवामद्दणमल्लजुद्धकरणेहिं संते परिस्संते सयपागसहस्सपाहिं सुगंधतेल्लमाइऍहि पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयाणिज्जेहिं विहणिज्जेहिं सव्विादयगायपल्हायणिज्जेहिं ऑब्भगेहिं अम्भिागए समाणे तेल्लचम्मसि पडिपुण्णपाणिपायसुउमालकोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेए- 15 हिं दक्खेहिं पठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं अभिगणपरिमद्दणुव्वलणकरणगुणणिम्माएहिं अहिसुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए चउन्विहाए संबाहणाए संबाहिए समाणे अवगयखेयपरिस्समे अट्टणसालाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ 20 २ ता मज्जणघरं अणुपविसइ २ ता संमुत्तजालाउलाभिरामे विचित्तमाणिरयणकुट्टिमयले रमणिज्जे पहाणमंडवांस णाणामणिरयणभत्तिचित्तंसि हाणपीहंसि सुहाणसणे १ A °सिक्के. २ L वियाई. ३ Not in L. ४ L°मादीहिं. ५ Not in A. ६ L अभंगहिं. ७ A पत्तोहिं. ८ B अम्भंगण. ९ Land B समत्त.

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104