Book Title: Ovavaiya Suttam
Author(s): N G Suru
Publisher: N G Suru

View full book text
Previous | Next

Page 84
________________ ८८०] औपपातिकसूत्रम् [Sutra II4 SUTRA 114. सेणं भविस्सइ अणगारे भगवंते ईरियांसमिए जाव गुत्तभयारी । SUTRA 115. तम्स णं भगवंतस्स एएणं विहारणं विहरमाणस्स अणते अणुत्तरे णिवाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे 5 केवलवरणाणदसणे समुप्पज्जहिति । [SÚTRA 115] तए णं से भगवं अरहा जिणे केवली भविस्सइ सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स परियागं जाणिहिति पासिहिति, तं जहा:--आगई गई ठिई चवणं उववायं तकं पच्छा कडं पुरेकडं मणो माणसियं खइयं भुत्तं कडं पडिसेवियं 10 आवीकम्मं रहोकम्मं अरहा अरहस्स भागी तं तं कालं मणोबयकायजोगे वट्टमाणाणं सव्वलोए सव्वजीणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सइ । SUTRA 116., तए णं से दढपइण्णे केवली बहूइं वासाइं केवलिपरियागं पाउणिहिति, २ त्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं 15 झूसित्ता सहि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता जस्सहाए कीरइ नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए केसलोए बंभचेरवासे अच्छत्तगं अणोवाहणगं भूमिसेज्जा फलहसेज्जा कहसेज्जा परघरपवेसो लद्धावलद्धं [वित्तीए माणावमाणणाओ] परेहि हीलणाओ खिसणाओ निंद १. इरिया'. २ Noted in L. ३ A छेएत्ता. ४ B°सिज्जा. ५ Noted in L.

Loading...

Page Navigation
1 ... 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104