Book Title: Oswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Author(s): Rai Sahab Krushnalal Bafna
Publisher: Rai Sahab Krushnalal Bafna
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[ २१ ] समाज के पञ्चों को तथा दूसरे लोगों को लड्डू खिलाने के लिये धनके अभाव से निर्दोष बालाओं को बेच कर कलङ्कका टीका लगाते हैं। बर विक्रय के भी बहुत से दोष उन्होंने समझाया और प्रस्ताव का अनुमोदन किया।
बाबू नाथमलजी चोरड़िया ने कहा कि धनवान लोग बुड्डे निकम्मे होते हुए भी अपनी वासना-तृप्ति के लिये युवतो कन्या से विवाह कर लेते हैं इसके कारण निर्धन भाइयों के सुयोग्य लड़कों को विना शादो किये रह जाना पड़ता है जिससे बुड्डों के साथ व्याही हुई ऐसी युवतीयां तथा ऐसे अविवाहित युवक दुराचार में फंस जाते हैं और इससे समाज का पतन होता है। समाज को चाहिये कि जानवरों को तरह अब लड़कियों को न बिकने दे। उन्होंने बर विक्रय को भी पूरो निन्दा की और इस प्रस्तावका समर्थन किया।
बाबू इन्दरचन्दजी बाफणा सीतामऊवालों ने भी इन्हीं शब्दों में प्रस्ताव का समर्थन किया।
प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ।
पांचवां प्रस्ताव यह सम्मेलन अनुरोध करता है कि स्त्रियों की शारीरिक, मानसिक तथा नैतिक उन्नति में पर्दा एक बड़ी रुकावट है, अतः इस हानिकारक प्रथा को समाज से यथाशक्य हटा दिया जाय। जिन सजनों ने इस प्रथा को दूर
कर दिया है, यह सम्मेलन उनका अभिनन्दन करता है।
यह प्रस्ताव रखते हुए श्रीमती सिद्धकंवर बाई ने कहा कि लाज शर्म स्त्रियों का भूषण है परन्तु परदे का रिवाज जो ओसवाल समाज में प्रचलित हैं, बहुत निन्दनीय है। दया, शील, उदारता, सन्तोष आदि गुणों की तरह लज्जा भी एक चित्त की वृत्ति है जो बाहर भीतर सब स्थानों में रात दिन हो सकती है। केवल सात योदी के भीतर बन्द रह कर या बड़ा सा घघट काढ कर कोई लजावती नहीं हो सकती। सञ्ची लजा के लिये वित्त को शुद्धि की आवश्यकता है। आज कल के परदे के ढकोसले ने समाज की स्त्रियों को बहुत गिरा दिया है। जो स्त्रियां जेठ, ससुर और पतिसे परदा. करती है वे नाई, माली, कुभार, परोहित, पुजारो तथा संडमुसंड फकीरों से परदा नहीं करने में संकोच नहीं समझ ती। स्त्रियों को ऐसा परदा उठादेना चाहिये जिससे उनको स्वास्थ्य-रक्षा में कठिनाई हो तथा उनके घरके लोगों की सेवा में फर्क आता हो। परदा ऐसा होना चाहिये जिससे कि वे दुष्टों से बची रहें। आज कल के बेढंगे परदे के कारण स्त्रियां बाहर नहीं निकलतीं और इस कारण वे विद्यादि उत्तम गुणोंसे वंचित रह जाती है। बाल बच्चों के पालन पोषण तथा उनकी प्रारम्भिक शिक्षा का भार मुख्यतया स्त्रियों पर ही होता है, इसलिये उनमें अविद्या के कारण सन्तानके शिक्षण में बड़ा अन्तर हो जाता है जिससे वे अपने धरके सहायक न
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