Book Title: Oswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Author(s): Rai Sahab Krushnalal Bafna
Publisher: Rai Sahab Krushnalal Bafna
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[४०] उत्साह के साथ इस की सफलता के लिये कटिबद्ध आप को सफलता प्राप्त करने से नहीं रोक सकती है। जोरियों को दूर करने का साधन बनाना चाहिये ।
होंगे, तो संसार की कोई भी शक्ति इस सम्मेलन को हमें अपनी कम
बन्धुओं ! आगे बढ़ने के पहिले मैं उस आक्षेप की चर्चा करना चाहता हूं जो सामाजिक संस्थाओं के ऊपर लगाये जाते हैं । कुछ लोगों का कहना है कि राष्ट्रीय प्रवाह के इस युग में सामाजिक संस्थाओं की उत्पत्ति होने से राष्ट्रीयता को धक्का लगता है । देश की स्थिति भिन्न २ दिशाओं में विभक्त हो जाने के कारण राष्ट्रीय प्रभाव शिथिल हो जाता है, लेकिन यदि गम्भीरता पूर्वक विचार किया जाय तो सामाजिक संस्थाओं के कट्टर से कट्टर विरोधियों को भी यह मानना पड़ेगा कि उनकी धारणा पुष्ट आधार पर अवलम्बित नहीं है। सज्जनो ! सामाजिक संस्थाओं से राष्ट्रीयता को धक्का लगने की यदि कुछ भी सम्भावना रहती तो आज आप मुझे इस स्थान पर न पाकर सामाजिक संस्थाओं के विरोधियों की श्रेणी में पाते, लेकिन मैं तो देखता हूं कि ऐसी संस्थाओं से राष्ट्रीयता की धारा शिथिल होने के बदले और भी प्रबल होती है । जिस तरह भिन्न २ अङ्गों के द्वारा समूचे शरीर का निर्माण होता है, उसी तरह भिन्न २ समाजों के संयोग से राष्ट्र की सृष्टि होती है। अपने शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिये हमें भिन्न २ अङ्गों की स्वच्छता की ओर ध्यान देना पड़ता है और सदैव इस बात की चेष्टा में रहना पड़ता है कि कोई अङ्ग कमजोर अथवा खन न होने पावे। एक भी अंग के रुग्न होने पर सारा शरीर शक्तिहीन हो जाता है, यही बात राष्ट्र के सम्बन्ध में भी लागू है । 'राष्ट्रीयता', 'राष्ट्रीयता' की चिल्लाहट में यदि हम सामाजिक सुधार की बात भूल जांय तो फल यह होगा कि हमारा राष्ट्रीय स्वरूप उस शरीर की तरह निकम्मा तथा रोगग्रस्त हो जायगा जिस के भिन्न २ अङ्ग रूम तथा शक्तिहीन है। अधिक विस्तार में न जा कर हम सामाजिक संस्थाओं के विरोधियों का ध्यान सामाजिक संगठन के इस पहलू की ओर आकर्षित करना चाहते हैं और हमारा विश्वास है कि यदि वे सहृदयता तथा निष्पक्षता पूर्वक इस प्रश्न पर विचार करगे तो वे भी इस निश्चय पर पहुंचेंगे कि सामाजिक संस्थाओं के द्वारा राष्ट्रीय प्रगति क्षीण होने के बदले और भी प्रबल होती हैं।
सज्जनो ! अब मैं आप का ध्यान अपने समाज को वर्तमान परिस्थिति की ओर आकर्षित करना चाहता हूं । इस प्रश्न की जटिलता आज हमारे कलेजे को विदीर्ण कर रही है। जब मैं अपने समाज की वर्तमान परिस्थिति पर विचार करता हूं तो निराशा के काले बादल हमारी आंखों के सामने आ जाते हैं। आज हमारा सामाजिक शरीर कई रोगों से ग्रस्त है, अविद्या का भूत हमारे सिर पर सवार है, पारस्परिक संगठन तथा. एकता का अभाव हमारे शरीर को टुकड़े २ कर रहा है, व्यापार की कमी हमारे शरीर को शक्तिहीन बना रही है। इन प्रश्नो पर विशेष प्रकाश श्रीमान् सभापती महोदय तथा आप प्रतिनिधि सज्जन डालेंगे। मैं संक्षेप में अपना मत आप लोगों के सामने रखता हूं ।
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