Book Title: Oswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Author(s): Rai Sahab Krushnalal Bafna
Publisher: Rai Sahab Krushnalal Bafna
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अथवा रूप गुणादि की समानता देख कर विवाह होते थे । मुसलमानी शासन कालमें उन सबों के अमानुषिक अत्याचारों के कारण बाल-विवाह प्रचलित हुआ है । इसी प्रकार अनमेल विवाह, बहु विवाह आदि की उत्पत्ति हुई है । इनके फलस्वरूप भावी सन्तान अयोग्य होती और उनसे समाज का तो कहना ही क्या, सारे देश की हानि होती है ।
आप जानते हैं कि हमारे ब्रिटिश भारत में बाल-विवाह निषेध के लिये सरकारी कानून बन गया है। देशी राज्यों में भी कहीं कहीं ऐसे ही कायदे बने हैं, परन्तु जहां जहां नहीं हुए हैं, वहां भी बनना चाहिये । इस कार्य के लिये उस राज्य के प्रजा लोग दत्तचित्त होकर शीघ्र कानून बनवा लें और उन्हें मान्य करें, यह मेरा नम्र निवेदन है ।
सामाजिक हित की दृष्टि से वृद्ध विवाह को दूर करने की भी बहुत बड़ी आवश्यकता है । वृद्ध विवाह के फलस्वरूप समाजमें नाना प्रकार की बुराइयों का प्रादुर्भाव होता है। हम लोगों को वैवाहिक अवस्था की कोई सीमा निर्धारित कर देनी चाहिये । मेरा विश्वास है कि इस प्रकार की व्यवस्था प्रायः सभी लोगों को मान्य होगो और समाज के सिरसे यह कलङ्क भी दूर हो जायगा ।
देखा जाय,
कन्या विक्रय की प्रथा अत्यन्त निन्दनीय है । जिस स्थान में यह कार्य होते वहां आन्दोलन अथवा सत्याग्रह करके तुरत इसे रोक देना चाहिये ।
विवाह चर्चा समाप्त करने के पहले अनमेल विवाह का जिक्र करना भी आव श्यक है । अनमेल विवाह से जो बुराइयां होती हैं, उनसे प्रायः सभी सज्जन परिचित हैं। इसके चक्र में पड़ कर पारिवारिक जीवन कितना दुःखपूर्ण हो जाता है, यह शब्दों के द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता । इस सम्बन्ध में अधिक कुछ न कह कर मैं केवल यही अनुरोध करना चाहता हूं कि अविलम्ब इन बुराइयों को सदा के लिये दूर कर देना चाहिये ।
हमारे समाज में और भी कई प्रकार की कुप्रथायें प्रचलित हैं । मृत्यु संस्कार को ही लीजिये । इस कुप्रथा को लेकर समाज में बहुत कुछ विवेचन हुआ है। लेकिन खेद का विषय है कि इस से समाज को अभी तक परित्राण नहीं मिला है। एक रिवाज जो देश में अत्यन्त हास्यास्पद बन रहा है और हमारे समाज को भीषण हानि पहुंचा रहा है, वह मृतक के घर में अग्नि संस्कार करने के बाद उनके निकट सम्बन्धियों का पहुंच जाना है। जिस के घर में कोई मरे, जहां किसी सगे सम्बन्धी का विर वियोग हो, वहां जाकर समवेदना प्रगट करना, बेकल परिवार को ढाढ़स बंधाना और उसकी हर प्रकार सहायता करना, इष्टमित्रों और बन्धुबान्धवों का कर्त्तव्य है । लेकिन ऐसे शोकातुर कुटुम्ब में भोजन करने को डट जाना वास्तव में अमानुषिकता है। ऐसी प्रथा सभ्य समाज में अन्यत्र कहीं देखने में नहीं आती । भला, आप सोचिये तो पति- पिता आदि के देहान्त से
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