Book Title: Oswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Author(s): Rai Sahab Krushnalal Bafna
Publisher: Rai Sahab Krushnalal Bafna

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Page 66
________________ [ ५६ ] लहवाय शुद्ध खदेखो वस्त्रों का व्यवहार नहीं कर सकतीं ? अब तो देश में सुन्दर वस्त्र बनने लगे हैं। अतः हमें प्रत्येक बात में स्वदेशी वस्तुओं से ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करनी चाहिये। मैं समाज के नेताओं से करवद्ध अनुरोध करता हूं कि इन सब बुराइयों को दूर करने में वे अपनी शक्ति तथा प्रभाव का उपयोग करें। सी प्रसंग में स्त्रियों के परदे का विषय भी कह देता हूं। जिन जिन प्रान्तों या शहरों में यह रिवाज है, वहाँ के लोगों को चाहिये कि वे सांसारिक जीवन में और स्वास्थ्य पर इससे जो जो हानि और लाभ होते हों उनकी अच्छी तरह जाँच कर लें। यदि घे इसे हानिकर समझें तो इस को शीघ्र ही हटाने का प्रयत्न करें। अबलाओं को सब प्रकार से उपयुक्त बनाने में और उन के द्वारा पुरुषों को कार्य क्षेत्र में पूरी सहायता मिलने में, यह हानिकारक रिवाज बहुत ही बाधक है। इतिहास से स्पष्ट है कि पहले अपने आयों में ऐसा न था। पुरुषों के साथ साथ स्त्रियों की उन्नति और स्वतंत्रता में ऐसा प्रतिबन्ध न था। मुसलमान शासकों के अत्याचार से ही यह परदे को कुप्रथा प्रचलित हुई थी और वह उस समय अनिवार्य भी था। अब समाज को आवश्यकतानुसार इस प्रकार की हानिकारक प्रथाओं में सुधार कर लेना चाहिये। गुजरात के जैनियों में बिलकुल ही पर्दा नहीं है, वे हमारे हिन्दी भाषा-भाषी समाज से किसी बात में पिछड़े नहीं हैं। परदा न रखने से उन्हें किसी प्रकार को हानि नहीं होती, अतः हम लोग ही इस प्रकृति-विरोधी प्रथा से क्यों चिपटे रहें ? इसी प्रकार स्त्रियों के भोज के समय पुरुषों का परिवेशन करना, विवाहादि के समय भद्दी भही मालियाँ गाना आदि जो कुछ हानिकारक और कुत्सित रिवाज जहाँ जहाँ मौजूद हैं, उन की भी इतिश्री होनी चाहिये। हाँ, मैं पहिले विवाह-क्षेत्र के विस्तार की चर्चा कर रहा था। इस विषय में और कौन कौन सी प्रथा प्रचलित है, इस सम्बन्ध में भी संक्षेपरूप से कुछ निवेदन कर देता हूं। एक किम्बदन्ती चली आती है कि अपने ओसवाल न्यात में सोलह गोत टाल कर विवाह होते थे। इस समय उन की संख्या घटते घटते केवल चार रह गयी है। कहीं कहीं दो मोत छोड़ कर ही वैवाहिक सम्बन्ध हो जाता है। गोत टाल कर विवाह आदि होगा वैज्ञानिक दृष्टि से भी हितकारी माना गया है। आजकल पंजाब के ओसवालों से राजपूताना आदि स्थान के ओसवालों का वैवाहिक सम्बन्ध कम देखने में आता है। इसका प्रधान कारण यही प्रतीत होता है कि हमारे पंजाब निवासी भाई गोत का व्यवहार कम करते हैं । यदि वे लोग भी अपने अपने मोत को अन्य ओसवाल भाइयों की तरह अपने नाम के साथ रखें और विवाह आदि के साय उसी प्रकार टालें तो उनका भी सामाजिक व्यवहार किसी प्रकार दोषणीय नहीं रह जायगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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