Book Title: Oswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Author(s): Rai Sahab Krushnalal Bafna
Publisher: Rai Sahab Krushnalal Bafna
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इसी प्रकार सभामण्डप और रंगमण्डप में किसी भी जाति का मनुष्य क्यों न हो, यदि वह शुद्ध हो कर प्रभु भजन और वंदन के लिये आवे तो इस में भी किसी को क्या आपत्ति हो सकती है ? बाहरी हिस्से में तो सदा से हर जाति के मनुष्य आया ही करते हैं। इस में तो छूत-अछूत का प्रश्न कभी उठा ही नहीं। किन्तु इन अछूत भाइयों का अन्य हिन्दू मंदिरों में प्रवेश करने का आग्रह करना वास्तविक अर्थ रखता है। जैन मंदिरों में तो इन का जाना या जाने का आग्रह करना निरर्थक है। हां, जो अछूत जैन आचार-विचार ग्रहण कर इस सम्प्रदाय में आवे तो दूसरी बात है।
___ इस सम्मेलन में अन्यान्य उद्देश्यों के साथ साथ समाज को आर्थिक स्थिति सुधारने का विषय भी रखा गया है। वर्तमान काल में आर्थिक स्थिति चारो ओर शोचनीय हो रही है। जब तक समाज के बन्धुगण परस्पर ऐक्यभाव स्थापित कर के पूर्ण विश्वास से व्यवसाय क्षेत्र में अग्रसर न होंगे तब तक अपनी स्थिति के सुधरने की आशा नहीं है। आर्थिक उन्नति के सम्बन्ध में अथवा रोजगार या व्यवसाय के विषय में जातीय सम्मेलन के द्वारा नियम बनाना या प्रतिबन्ध स्थापित करना संभव नही है। जब आपस के संगठन से बल और विद्या प्रचार से ज्ञान की वृद्धि होगी और समाज से हर तरह की फिजूलखी दूर होगी उस समय हमारी आर्थिक स्थिति सुधरेगी। परन्तु स्थिति सुधारने के लिये बैङ्क आदि कोई भी ऐसी सार्वजनिक संस्था खास एक समाज के लिये लाभदायक होना कठिन है। व्यवसाय का क्षेत्र विशाल है। यदि हम लोग अच्छी तरह सोच विचार कर सत्यता और परिश्रम से अपने धन और बुद्धि को इस ओर लगायेंगे तो अवश्य आर्थिक स्थिति में उन्नति होगी।
सजनो! जातीय इतिहास प्रकाशित करना एक सराहनीय कार्य है, परन्तु ओसवाल जाति का इतिहास तैयार करना टेढ़ी खीर है। किसी जाति का इतिहास लिखने के लिये कलम उठाने पर उस के प्रारम्भिक इतिहास अर्थात् उत्पत्ति से ही लिखना होगा, पोछे परवत्तों इतिहास लिखा जायगा। अद्यावधि 'महाजन वंश मुक्तावली', 'जैन सम्प्रदाय शिक्षा', 'जैन जाति महोदय' आदि कई ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। इन में ओसवाल, श्रीमाल, पोरवाल, खंडेलवाल आदि न्यातो को उत्पत्ति का वर्णन है। इन के अतिरिक्त राजपूताने के तथा विशेष कर मारवाड़ के कुछ भाटों के यहां 'ओसवंश उत्पत्ति' आदि के कवित्तों का संग्रह मिलता है। इन लोगों के पास उन के गोत्रवार पूर्व पुरुषों की तालिका भी मिलती है। इन सबों में उत्पत्ति के विषय में जो कथा है, वह प्रामाणिक ज्ञात नहीं होती। ओशियां में जो मन्दिर प्रशस्ति सं० १०१३ की मिलती है, उस में
और वहां के सचियाप माता के मन्दिर में सं० १२३६ का जो लेख वसमान है, उस में हमारे मोशवंश को उत्पत्ति का कोई उल्लेख नहीं है। जैन यतिओं के यहां जो पत्र मिले हैं, उनमें वीरात् ७० बर्षे ओशवंश उत्पत्ति लिखी मिलती है और कुल भाटों के कपित्तों में विक्रम संवत् २२२ है। परन्तु आज तक इस विषय की खोज में जो कुछ प्रमाण उपलब्ध हैं, उनसे ये दोनों ही भ्रमात्मक मालूम पड़ते हैं। वीर भगवान् के
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