Book Title: Oswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Author(s): Rai Sahab Krushnalal Bafna
Publisher: Rai Sahab Krushnalal Bafna
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। ६० ] . अछूतों की मुख्य आपत्तियां ये हैं कि उन्हें कमों और तालाबों में पानी मरने नहीं दिया जाता, स्थलों और कालेजों में वे उच्च जाति के हिन्दू लड़कों के साथ पीनही पाते, मन्दिरों में प्रवेश नहीं कर सकते और पतित यानीच गिने जाने के कारण उन्हें अच्छी नौकरियां नहीं मिलती, जिस से उनकी जीचिका में बाधा पड़ती है। ये आपत्तिमा उचित है। जब हम लोग कारखानों में काम करने वाले मुसलमान, ईसाई आदि का छुमा हुमा नल का जल पीते हैं, तो फिर इन हिन्दू अस्पृश्यों का छुमा पानी पीने में क्या पाच है ! ऊंट के चमड़े से बनी हुई मशक का पानी भी तो हम पीते ही है। मला सोचिये तो, जिस को हम आज अछत कह कर दुतकारते हैं, कल को हो यदि वह ईसाई या मुसलमान हो जाय तो विद्यालयों में सब के साथ पढ़ता है
और किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। रेलगाड़ी तथा दाम पर अछूत हमारे बगल में बैठते ही हैं। और उसमें हमें आपत्ति नहीं होती, तब उन्हें नौकरी देने में क्या ऐतराज हो सकता है ?
भारत के अधिकांश प्रदेशों की व्यवस्थापिका सभाओं में चमार, भंगी आदि अन्त भाई सदस्य हैं। उनके साथ सब हिन्दू बिना अगर मगर के सहर्षे बैठते है। सच तो यह है कि प्रत्येक मनुष्य अछूत तो उस अवस्था में रहता है जब वह अशुचिपूर्ण हो । उदाहरणार्थ जब हम कोई अशुद्ध काम कर के आते हैं तो स्नानादि करने के पहले तक अछूत रहते हैं। स्वास्थ्य और विज्ञान की दष्टि से यह उचित भी है। अछूत तो तभी तक छूने योग्य नहीं है जबतक वह गंदा काम करे। उस के बाद नहा धो लेने पर वह शुद्ध और स्पृश्य हो जाता है। किन्तु मनुष्य समाज की अत्यावश्यक सेवा करने वालो जाति पर सदा के लिये अस्पृश्यता का कलङ्क लगाना महान पाप है। समयं की गति को देख कर यह बिलकुल अनावश्यक है।
इस विषय में जैन समाज बहुत हो उदार है। जैन सिद्धांत तो यह है कि प्राणी मात्र की आत्मा झान, दर्शन चारित्रमयो है और निश्चय रूप से समान है। किसी भी मनुष्य को अपने से हीन या नोव समझने से, समझने वाले को मोहनीय कर्म का बंध होता है, और किसी भी जीव को उस के अधिकारों से वञ्चित करने से बा उस की स्वाधीनता में बाधा डालने से अन्तराय कर्म के बंध का हेतु होता है। इस दृष्टि से जैन धर्म मनुष्य मात्र में भेद भाव नहीं रखता। अब रही मन्दिर प्रवेश को बात। हमारे मन्दिरों के तीन विभाग हैं :
(१) गर्भ गृह अर्थात् मूल गम्भारा (२) सभामण्डप और डमण्डप (३) बाहरी भाग
मूल गंमार में स्नान कर के, शुद्ध वस्त्र धारण कर अनी तथा अन्य जातियों के निरामिशाषी भी जिनेन्द्र देव की पूजा के निमित्त जायें तो किसी को कोई आपत्ति न हो।
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