Book Title: Oswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Author(s): Rai Sahab Krushnalal Bafna
Publisher: Rai Sahab Krushnalal Bafna

View full book text
Previous | Next

Page 64
________________ [ ५४ ] सामाजिक जीवन का सब से अधिक सम्बन्ध रोटी और बेटी से है । संक्षेपतः इसे हम निम्नलिखित तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं: १ - एक पंक्ति में कच्चा पक्का भोजनादि २- परस्पर वैवाहिक सम्बन्ध ३ - परस्पर गोद लेन-देन का सम्बन्ध प्राचीन काल से ओसवालों का बारह न्यातों के साथ रोटी व्यवहार चला आता है, और अबतक मौजूद है । परन्तु बेटी व्यवहार और गोद लेन-देन का व्यवहार केवल श्रीमाल भाइयों के साथ होता है। कहीं कहीं पोरवालों और खंडेलवालों के साथ भो बेटी व्यवहार है, ऐसा सुना है। यह क्रान्ति का युग है । प्रत्येक समाज अपनी उन्नति तथा प्रसार की ओर अग्रसर हो रहा है । इस प्रवाह से हम लोगों को भी उचित लाभ उठाना चाहिये। मेरा तो मत यह है कि जिन जिन न्यातों के साथ रोटी व्यवहार है, उन से विवाह सम्बन्ध भी स्थापित किया जाय। इस से समाज की सीमा बहुत कुछ विस्तृत हो जायगी। देश की वर्त्तमान परिस्थिति इस समय हमारे सामने है । प्रायः सभी समाज उदारता तथा सद्भाव के द्वारा अपनी सीमा विस्तृत कर रहे हैं। हम लोगों को भी इस दौड़ में किसी प्रकार पीछे नहीं रहना चाहिये । अपने समाज की वर्तमान स्थिति और रीति रिवाज देखते हुए यह कहना पड़ता है कि जिन न्यातों से रोटी व्यवहार है, उनके साथ बेटी व्यवहार खोल दें, तो अपने समाज की सीमा और संख्या, जो दिन प्रति दिन संकीर्ण और क्षीण हो रही हैं, बहुत कुछ विस्तृत हो सकती हैं। अपने समाज के प्रधानुसार विवाह के क्षेत्र में धर्म की अथवा आम्नाय की रोक टोक नहीं होनी चाहिये । देखिये ! हमारे एक ओसवाल न्यातों में ही श्वेताम्बर मूर्त्तिपूजक, स्थानकवासी, तेरहपंथी, दिगम्बर, वैष्णव आदि हैं और इन में विवाह आदि में कोई बाधा नहीं पड़ती। ऐसी दशा में जिन न्यातों से खान पान खुला हुआ है, और वे एक ही धर्म को मानने वाले हैं, तो परस्पर विवाह आदि सम्बन्ध भी खुल जाना बिलकुल ही न्यायसंगत और उचित है। इस से कई प्रकार के लाभ होंगे । हमारे ओसवाल न्यात में जो दशे और पांचे कहलाते हैं, उन के विषय में भी हम लोग उदासीन बैठे हैं । यह तो सिद्ध है कि हम लोग एक ही थे, किसी समय कुछ कारणों से वैमनस्य होकर पारस्परिक सामाजिक व्यवहार बन्द हुआ होगा । जिन कारणों से सामाजिक व्यवहार बन्द हुआ होगा, अब उनका अस्तित्व भी नहीं है । अतः अब उन के साथ सब प्रकार का सम्बन्ध और व्यवहार खोल देना चाहिये । वैवाहिक क्षेत्र की सीमा विस्तृत करने से संतान नीरोग और बलवान होगी। इसकी विशालता से कुटुम्बियों का पारस्परिक वैमनस्य घट जायगा । प्रायः देखा गया है कि एक ही गांव या शहर में विवाह होने से सन्तानोत्पत्ति कम हो जाती है और सम्बन्धियों के बीच पारस्परिक सद्भाव की भी कमी हो जाती है। इसलिये जहां तक सम्भव हो, एक गांव की लड़की का विवाह दूसरे गांव या शहर में करना चाहिये । इस के साथ ही दूसरे स्थानों में विवाहादि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86