Book Title: Oswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Author(s): Rai Sahab Krushnalal Bafna
Publisher: Rai Sahab Krushnalal Bafna
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[ ३८ ] है। एक स्थान पर वे लिखते हैं कि "राजा विशालदेव के पूर्वज अजयपाल की बकरी के झुण्ड के आधार पर इस नगर का नाम अजमेर पड़ा। सर अलेकजेण्डर कनिंघम का कहना है कि “अजयपाल नामक राजा के नाम पर इस नगर का नामकरण अजमेर हुआ। इसी प्रकार अजमेर नाम की उत्पत्ति के सम्बन्ध में नाना प्रकार की बातें कही जाती हैं।
इस नगर की प्राकृतिक छटा भी बड़ी निराली है। अभी तक चौहान राजाओं की विभूतियों के भग्नशेष दर्शकों के हृदय में स्फूर्ति पैदा करते हैं। इस नगर में देहली दरवाज़ा, आगरा दरवाज़ा, ऊसरी दरवाज़ा तथा मदार दरवाज़ा बहुत ही प्रसिद्ध हैं।
अजमेर हिन्दू और मुसलमानों के लिये पड़ा ही पवित्र स्थान है। हिन्दुओं के तीर्थ स्थानों में पुष्कर तीर्थ को एक विशेष स्थान प्राप्त है और वह अजमेर के निकट ही है। ख्वाजा साहब का नाम मुसलमानों के लिये बड़ा ही पवित्र माना जाता है । जैनियो का भी अजमेर से बड़ा ही घनिष्ट सम्बन्ध है। हमारे प्रसिद्ध आचार्य श्री जिनदत्त सूरिजी का संवत् १२११ में यहां ही स्वर्गवास हुआ था। इन का स्तूप इस समय तक यहां विद्यमान है।
ओसवाल समाज का तो इस नगर से बड़ा ही गौरवपूर्ण सम्बन्ध है। धार्मिकता के साथ २ यहां के ओसवालों ने वीरता का भी यथेष्ठ परिचय दिया हैं। एक नमूना देखिये-१७८७ ई० में मरहटों के हाथ से अजमेर को मुक्त करने के बाद मरवाड़ के महाराजा विजयसिंहजी ने धनराजजी सिंधवी नामक एक ओसवाल वीर को यहां का शासक बनाकर भेजा, लेकिन चार वर्ष के बाद ही मरहटों ने फिर मारवाड़ पर चढ़ाई की और मेड़ता तथा पाटन की लड़ाइयों में उनकी विजय हुई। उसी समय मरहटा सेनापति ने अजमेर पर धावा किया। वीरवर सिंघवी अपने मुट्ठी भर वीरों के साथ किले की रक्षा करता रहा और मरहटों को केवल दुर्ग पर घेरा डाले रह कर हो सन्तोष करना पड़ा। पाटन का पराजय के बाद महाराजा विजयसिंहजी ने वीरवर धनराज को आज्ञा दी कि वह किला शत्रुओं को सुपुर्द कर जोधपुर लौट आवे। सिंघवीजी के सामने बड़ी विकट समस्या उपस्थित हुई। एक ओर थी स्वामी की आज्ञा और दूसरी ओर था कायरता का कलङ्क। वीरवर धनराज ने हीरे की कणी खा ली। उस वीरकेसरी के अन्तिम शब्द ये थे-“जाकर महाराज से कहो कि उन की आज्ञा पालन का मेरे लिये केवल यही एक मार्ग था। मेरे मृत-शरीर के ऊपर से ही मरहटे अजमेर में प्रवेश कर सकते हैं।" . .. सजनों! मुझे गर्व हैं कि वीरवर सिंघवी की इस लीला-भूमि में आपका स्वागत करने के लिये मैं उपस्थित हुआ हूं। सम्मेलन का अधिवेशन बुलाने का अजमेर को एक विशेष अधिकार प्राप्त है और वह हैं इसका केन्द्रिय महत्व। यह नगर ऐसे स्थान पर बसा हुआ है, जहां हर प्रान्त के निवासी सुविधापूर्वक पधार सकते हैं। पञ्जाव, राजपूताना, युक्तप्रान्त तथा मध्यप्रान्त के भाइयों के समागम के लिये यह बड़ा ही सुविधापूर्ण स्थान है। यह बातें सोचकर ही सम्मेलन का प्रथम अधिवेशन यहां करने की
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