Book Title: Oswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Author(s): Rai Sahab Krushnalal Bafna
Publisher: Rai Sahab Krushnalal Bafna

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Page 49
________________ [ ४१ ] सब से पहिले हम लोगों को अपना ध्यान अविद्या की ओर आकर्षित करना वाहिये। जब तक हम अज्ञान से छुटकारा नहीं पाते, किसी प्रकार हमारा उत्थान नहीं हो सकता है। उन्नति की ओर अग्रसर होने की सब से पहली सीढ़ी विद्या-प्राप्ति ही है, अविद्या के कारण हमारे समाज को हर प्रकार से क्षतिग्रस्त होना पड़ रहा है। यह विद्या का ही फल है कि निर्धन धन नहीं पैदा कर सकते और धनी अपने धन का सदुपयोग नहीं कर सकते। बेचारे गरीबों को कोई व्यवसाय नहीं सूझता और धनियों को फिजलखी तथा अकर्मण्यता से छुटकारा नहीं मिलता। यह कितने खेद की बात है कि हमारे समाज का न कोई आदर्श पत्र है और न कोई कालेज। मैं आप से पूछना चाहता हूं कि क्या अपने समाज में धन जन को कमी है ? मेरा अनुमान ही नहीं दृढ़ विश्वास है कि भाप में से प्रत्येक आदमी स्वाभिमान-पूर्वक यही उत्तर देंगे कि हमारे समाज में न तो धन की कमी है और न जन की। फिर भी अविद्या के कारण इस समय हमारा सामूहिक रूप नहीं के बराबर है। समाचारपत्र के हो प्रश्नको लोजिये। सामाजिक पत्र के अभाव के कारण हम लोग अपनी उन्नति का कोई जोरदार आन्दोलन नहीं कर सकते हैं। अपने विवार को एक दूसरे तक पहुंचाना भी हम लोगों के लिये कठिन है। कई प्रान्तों में हमारे ओसवाल भाइयों ने गौरवपूर्ण कार्य किया है। यदि इतिहास के रूप में उन्हें लिपिबद्ध किया जाय तो उस से हमारे समाज का मुख उज्ज्वल हो सकता है, परन्तु यहां तो अविद्या का बोलबाला है। कौन लिखे और कौन लिखावे। कुछ दिनों तक यदि यही क्रम जारी रहा तो हमारा सारा ऐतिहासिक महत्व नष्ट हो जायगा और हम सदा के लिये अन्धकार के गहरे गर्त में गिर जायेंगे, अब भी समय है। दिनका भूला भटका यदि शाम को घर लौट आवे तो वह भूला हुआ नहीं कहलाता है। यह अविद्या का ही फल है कि हम लोग अपने साधनों का उपयोग नहीं कर पाते हैं। राजपुताने तथा अन्य स्थानों में कितने ही ओसवाल नवयुवक बेकार बैठे हैं। यदि निजी प्रान्त की प्राकृतिक विभूतियों का वे उपयोग करें तो अपने लिये बहुत बड़ा क्षेत्र तैयार कर सकते हैं। इस से न केवल उनकी निजी अथवा ओसवाल समाज की भलाई होगी, प्रमूचा देश सामूहिक रूप से उस से लाभान्वित हो सकेगा। नवोन साधनों का उपयोग करने से राजयुताने में भी वर्तमान ढङ्ग के उद्योग-धन्धों का निर्माण हो सकता है, लेकिन इस के लिये वैज्ञानिक ज्ञान को आवश्यकता है और अविद्या के रहते ऐसा होना किसी प्रकार सम्भव नहीं है। इस सम्बन्ध में समाज के धनी, मानी सजनों का भी बहुत कुछ कर्त्तव्य है। उन्हें चाहिये कि किसो संगठित उद्योग के द्वारा इस सामाजिक रोग को दूर करने को चेष्टा करें। मैं यह नहीं कहता कि हमारे समाज में पढ़े-लिखे लोगों का सर्वथा अभाव है। अवश्य हो हमारे समाज में अनेक ऐसे रत्न हैं, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता के द्वारा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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