Book Title: Oswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Author(s): Rai Sahab Krushnalal Bafna
Publisher: Rai Sahab Krushnalal Bafna

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Page 61
________________ [ ५१ ] इसके अतिरिक्त एक बात और भी है । वर्त्तमान युग में व्यापार के तरीकों में भी महान क्रांतिकारी परिवर्तन हो गये हैं। अब तक व्यापार का अर्थ केवल उत्पादक और क्रेता के बीच का काम ( middle man's work ) ही था । अर्थात् अबतक किसान अनाज उत्पन्न करता था अथवा जुलाहे कपड़ा तैयार करते थे । व्यापारी का काम केवल यही था कि देश-विदेश के किसानों से उन की उपज अथवा जुलाहे और अन्य कारीगरों से उन का माल खरीद कर देश-विदेश के खरीदारों ( consumers ) तक पहुंचा देना । परन्तु अब आने जाने और माल पहुंचाने के साधनों की सुगमता हो जाने से इस बात की जोरों से कोशिश हो रही है कि स्वयं उत्पादक अपने माल को सीधा खरीदार के पास पहुंचा दे । इस का परिणाम यह है कि बीचवाले व्यक्तियों की संख्या दिन दिन घट रही है। अब तो मिलवाले अपना माल तैयार कर के सीधे डाक के द्वारा खरीदारको घर बैठे पहुंचा देते हैं। अब जमाना स्वयं उत्पादक बनने का है । अतः इस समय शिल्प और उद्योग-धन्धों के द्वारा ही कोई भी जाति समृद्धिशाली हो सकती है । इसलिये इस बात की बड़ी आवश्यकता है कि कालेजों में या अन्यत्र हमें ऐसा प्रबन्ध करना चाहिये कि ओसवाल नवयुवक नाना कलाओं और उद्योग-धन्धों में प्रवीण बन कर उन के द्वारा अपनी आजीविका अर्जन करें। जिस हुनर से सत्यता के साथ अपनी जीविका चले उसे सीखना युवकों का कत्तव्य है । ओसवाल जाति व्यापार प्रधान है। भारत के व्यापार में उन का मुख्य स्थान था । उन के द्वारा देशी शिल्प, कला-कौशलादि की भी अपूर्व उन्नति हुई थी, पर महान लज्जा का विषय है कि आज वह बहुत पीछे चली गयी है । अवश्य ही कुछ उद्योग-धन्धे ऐसे हैं, जिन से हमारे धर्म को व्याघात पहुंचे। परन्तु ऐसे धन्धों की संख्या अधिक नहीं है और उन के बिना भी हमारा काम आसानी से चल सकता है । फिर भी ओसवाल समाज में जितना अधिक शिल्प का प्रचार होगा उतनी ज्यादा हमारी समृद्धि बढ़ेगी । “उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी” उद्योगी वीरों को ही लक्ष्मी वरण करती हैं। इस लिये अपने धर्म की रक्षा करते हुए हमें उद्योग-धन्धोंको अपनाना चाहिये । इस समय हमारी जाति में जो नवयुवक शिक्षा प्राप्त कर चुकते हैं वे भी कुछ तो शिक्षा के दोष से कुछ अन्य कारणों से बंगालियों की तरह नौकरियों के पीछे दौड़ने लगते हैं । प्राचीन समय में हम लोगों ने इस ओर कभी ध्यान न दिया था। वीरवर भामाशाह ने व्यापार वाणिज्य से अतुल सम्पत्ति पैदा कर महाराणा प्रताप को देश-रक्षा के कार्य में सहायता दी थी । अतः इस ओर भी मैं अपने भाइयों का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित करता हूं । सज्जनो ! आधुनिक काल में सब से अधिक महत्व स्त्रो शिक्षा को दिया जा रहा है और यह उचित ही है। माताओं की गोद में ही समाज पल कर बड़ा होता है । हमारे महापुरुष माताओं की गोद में ही पल कर बड़े हुए हैं। वे ही किसी कुटुम्ब को बनाती या बिगाड़ती हैं । खेद का विषय है कि हमारे समाज में स्त्री-शिक्षा का सब से कम प्रचार है । अशिक्षिता माताओं की सन्तान कैसी होगी ? इस का निर्णय मैं आप पर ही छोड़ता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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