Book Title: Oswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Author(s): Rai Sahab Krushnalal Bafna
Publisher: Rai Sahab Krushnalal Bafna

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Page 60
________________ [ ५० ] बहुत सहायता करेगा। स्कूल और कालेज में इस बात का विशेष ध्यान रखना पड़ेगा कि छात्र सादे जीवन के साथ साथ उच्च विचारों को हृदय में स्थान दें। अपनी जाति के छात्रों को सच्चरित्र बनाने के लिये हमें उन सब कालेजों और विश्वविद्यालयों में अपने स्वतन्त्र बोर्डिङ्ग हाउस खोलने पड़ेंगे, जहां ओसवाल जाति के छात्र पढ़ते हों। जिस केन्द्र में १०, १५ छात्र भी पढ़ते हों वहां एक बोर्डिङ्ग हाउस की स्थापना की जा सकती है। इस से एक लाभ यह भी होगा कि उन में खर्च कम पड़ने से निर्धन छात्र भी उच्च शिक्षा प्राप्त करने में समर्थ होंगे। इन निर्धन छात्रों की पढ़ाई न रुके, इस का ख्याल करना पड़ेगा। बम्बई के 'महावीर विद्यालय' के नाम से आप लोग भली भांति परिचित होंगे, उस से बम्बई प्रांत के ही नहीं अन्यान्य प्रान्तों के उत्साही छात्रों को भी जो मदद मिलती है, वह किसी से छिपी नहीं है। मेरे क्षुद्र विवार में तो एक ऐसे फण्ड की नितान्त आवश्यकता है जिस से ये सब जातीय कार्य हो सके। उस फण्ड से कालेज, स्कूल, ग्रामों में पाठशाला, कन्याशाला, पुस्तकालय और उत्तीर्ण छात्र छात्रियों की सहायता और उत्साह निमित्त वृत्ति, पारितोषिक वितरण आदि कार्यों की व्यवस्था हो सकेगी। ऐसे महान कार्यों के लिये विशाल फण्ड की आवश्यकता है। वर्तमान परिस्थिति देखते हुए यदि ऐसा फण्ड एकत्रित होना सम्भव नहीं हो तो कम से कम अपने समाज के भाई लोग जहां जहां रहते हों वहां समय और साधन के अनुकूल फण्ड से इस प्रकार के कार्यों की व्यवस्था करें। पारसियों, यहूदियों तथा कुछ हिन्दू जातियों के ऐसे फण्ड हैं जो अपनी अपनी जातिकी महान सेवा कर रहे हैं। इस फण्ड से उन के अस्पताल, अनाथालय आदि भी खुले हुए हैं, निस्सहाय अबलाओं की सहायता की जाती हैं, अकिंचन छात्रों की पढ़ाई का खर्च उस से चलता है, तीब्र बुद्धिवाले योग्य छात्रों को उच्च शिक्षा के लिये प्रोत्साहन मिलता है। अनाथ विधवाओं को इधर उधर बहकने से बचाया जाता है और अन्य अनेक जातीय कार्यों में इस का सद्व्यय हो सकता है। . • अब समय ने बहुत पलटा खाया है। एक समय था जब केवल वैश्य ही व्यापार करते थे, लेकिन आज वर्णों का प्रतिबन्ध नहीं रहा। आज तो प्रत्येक व्यक्ति इसी चिन्ता में है कि किसी प्रकार धन कमाया जाय। इसलिये ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और सभी वर्णवाले वही काम करते हैं, जिन में उन्हें अधिक से अधिक लाभ हो। यह कोई नहीं देखता कि यह काम अमुक वर्ण का है। कलकत्ते में ब्राह्मणों की जूतों की दुकानें, धोषीखाने आदि हैं। आज व्यापारिक प्रतियोगिता का क्षेत्र अत्यन्त विशाल हो गया है। ऐसी स्थिति में हमें भी होश सम्भालना चाहिये। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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