Book Title: Oswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Author(s): Rai Sahab Krushnalal Bafna
Publisher: Rai Sahab Krushnalal Bafna

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Page 26
________________ [ २० ] .चौथा प्रस्ताव यह सम्मेलन कन्या विक्रय और साथ ही साथ समाज में बढ़ते हुए घर विक्रय को घृणाकी दृष्टि से देखता है। - इस सम्मेलन के विचार में डोरे, टीके इत्यादि का रिवाज़ तथा नेग नुकतों का ठहरना बहुत घृणास्पद है। यह सम्मेलन नवयुवकों और कन्याओं से विशेष अनुरोध करता है कि वे अपने आप को किसी भी हालत में इस लेन देन के बदले न बिकने दें और जहां ऐसा लेन देन हो उस विवाह के वरपक्ष वा कन्यापक्ष के किसी भी काम काज में सम्मिलित न हों। - यह प्रस्ताव आगरा-निवासी बाबू चन्दमलजी वकील ने रखते हुए कहा कि कन्या विक्रय और समाज में बढ़ता हुआ वर विक्रय ओसवालों को अधोगति का कारण है। अपने बच्चे बञ्चीयों को बेचने से ज्यादा घृणास्पद कार्य और कौन सा हो सकता है। उन्होंने बतलाया कि समाज के बहुत से लोग कन्या-विक्रय को बुरी दृष्टि से देखते हैं और यथाशक्ति उसका विरोध करते हैं परन्तु वे हो लड़कों को सगाई में टीका ठहराने और लेने में कुछ संकोच नहीं करते वरन् उस को आदर सूचक समझते हैं इसका नतीजा यह होता है कि लड़कों के मातापिता लड़की के गुण, अवगुण, कला कौशल पर ध्यान नहीं देते और केवल पैसे के लालच में पडकर शादी कर लेते हैं जिस से अनमेल और गुण कर्म विरुद्ध विवाह होते हैं और दाम्पत्य-जोवन क्लेशमय हो जाता है। माता पिताओं को कन्या यें इतनी भार रूप हो जातो है कि उनका जन्म आपत्ति रूप समझते हैं। नवयुवकों और कन्याओं को आदेश करते हुए उन्होंने कहा कि वे लोग अपने आप को इस तरह न बिकने दें और जहां ऐसा अमानुषिक लेन देन हो उस विवाह के वरपक्ष वा कन्यापक्ष के किसी भी काम काज में सम्मिलित न होवें। बाबू किशनलालजी पटवा कुकड़ेश्वर वालोंने कहा कि कन्या विक्रय ही ने वृद्धविवाह को बढ़ा रखा है। कुछ काम-विलासी धनवान बुड्ढे मूर्ख माता पिताओं को प्रलोभन देकर उनकी युवती कन्या को जो किसी नवयुवक के साथ व्याही जानी चाहिये थी, हर लेते हैं। ये लोग सचमुच समाज के कौवे हैं जिन्हें दूसरों की चीज लेने में संकोच तक भी नहीं होता। मूर्ख मा बाप बेचारी कन्या को एक व्यापार की वस्तु समझते हैं और बुड्ढे की उम्र का ख्याल न कर उस पर ऊंची से ऊंची बोलो लगाते हैं नतीजा यह होता है कि योग्य किन्तु धनहीन स्वजातीय भाई विना स्त्री के रहते हैं और ऐसी भाग्यहीन कन्याओं को भो वैधव्य भोगने की बारी आती है। अपने समाज की संख्या धटने का भी यह कारण है क्योंकि प्रथम तो ऐसे बुड्ढों के सन्तान ही नहीं होती और अगर हुई भी तो अल्प-आयुवाली होती है। समज का इस में बहुत दोष है क्योंकि ऐसे बुड्डों के हाथ युवती कन्या के बिकने के विरुद्ध वह आवाज़ नहीं उठाता है। मूर्ख माता पिता बेचारे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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