Book Title: Oswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Author(s): Rai Sahab Krushnalal Bafna
Publisher: Rai Sahab Krushnalal Bafna

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Page 25
________________ [ १६ ] विवाह के कई खर्चे, जो कि प्रस्ताव में बताये गये हैं, अनावश्यक, निरर्थक और भद्दे हैं, उनको बन्द करने में केवल रुपया ही नहीं बचता है वरन् विवाह की शोभा बढ़ती है। इन अनावश्यक खर्चों के कारण ही आजकल लोगों को विवाह में कर्जदार होना पड़ता है और विवाह का जो वास्तविक आनन्द है उससे बञ्चित रहना पड़ता है। बड़ी २ बरातें तथा उनकी मिजवानी में बहुत धन व्यर्थ खर्च किया जाता है जिसका नतीजा यह होता है कि हमारे समाज में कन्याओं का जन्म होबा भार रूप समझा जाता है। स्थानीय लोग मिलकर नियम बना लें और ऐसे फजूल खर्चों को हमेशा के लिये मिटा दें तो समाज का बहुत कल्याण हो सकता है। उन्होंने बतलाया कि ऐसे शिक्षित समप में यदि कोई सजन विवाह में वेश्या नृत्य कराकर अपने परिवार और बालबचों पर बुरे प्रभाव डालें और धन का दुरुपयोग करें तो इस से बढकर क्या मूर्खता हो सकती हैं। इस प्रस्ताव में बताये हुए बहुत से फजूल खर्चों के कारण ही अपने बच्चों की शिक्षा के लिये यथोचित व्यय नहीं कर सकते और उसके फलस्वरूप हमें अपने जीवनक्रम को नीचे गिराना पड़ता है। अब समय आगया है कि हमलोग चेते और ऐसे फजूल खर्च को तुरत बन्द करें। बाबू नथमलजी चोरड़िया ने इस प्रस्ताव को अनुमोदन करते हुए कहा कि धनी लोगों का ही इस में खास दोष है क्योंकि उनके पास खर्च करने के लिये पैसा है इसलिये थे समाज के दूसरे लोगों की परवाह नहीं करते। वे लोग मद्रास सक स्पेशल ले जाने और हजारों आदमियों को दावतें देने में ही अपनी कीर्ति समझते हैं। क्या ही अच्छा हो यदि ये धनी लोग अपने धन का सदुपयोग करना सीखें और पैसे को इस तरह बरबाद न कर उसे ऐसे कार्यों में लगावे जिससे समाजका कल्याण हो। बाबू समरथमलजी सिंघो वकील सिरोही ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि दूसरे २ देशों के धनी लोग अपने धनको ऐसे २ कामों में लगाते हैं जिससे सर्वसाधारण का हित होता है। वे लोग कालेज, स्कूल, छात्रवृत्ति आदि फण्ड कायम करते हैं और सिवाय अपने दोस्तों के दावत देने के किसी तरह के कार्य अथवा शादी के मौके पर अपने धन का आडम्बर नहीं करते। भारत के और २ समाजों में और विशेष कर ओसवालों में ऐसे धनी न भी होते हुए विवाहों में हजारों लाखों रुपये खर्च कर देते हैं। वह खर्च इस रूप में किया जाता है जिसका कोई भावजा नहीं होता और इन फजूलखर्ची के रिवाजों से गरीब लोग मर मिटते हैं। हैसियत से ज्यादा कर्ज लेकर खर्च कर डालते हैं और फिर जन्म भर तक चुकाते हैं। ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं कि इस प्रकार किये गये कर्य के कारण नौजवानों की असामयिक मृत्यु हुई है फिर भी खेद है कि समाज नहीं चेतता। उन्होंने बतलाया कि समय को देखते हुए कई भाइयों ने इन खौँ पर नियन्त्रण करने के लिये नियम बना लिया है। अब उपिस्थत सज्जनों का यह कर्तव्य है कि इस प्रस्ताव को पास कर इस के पालन करने में कटिबद्ध हो जाय। प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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