Book Title: Oswal Maha Sammelan Pratham Adhiveshan Ajmer Ki Report
Author(s): Rai Sahab Krushnalal Bafna
Publisher: Rai Sahab Krushnalal Bafna

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Page 41
________________ [ ३५ ] उपसंहार जिस ओसवाल महासम्मेलन की चर्चा केबल चंद मित्रों की मंडली में चली थी वही यथासमय प्रारम्भ होकर सानंद समाप्त हो गया। किसी बात की चर्चा आसान होती है, लेकिन उसे कार्य रूप में परिणत करना बड़ा ही कठिन हो जाता है । समाज के अन्दर भिन्न २ प्रवृत्ति तथा विचारके मनुष्य पाये जाते हैं । ऐसी दशा में यह स्पष्ट है कि उन्हें एक प्लाटफार्म पर लाकर खड़ा करना बहुत ही कठिन कार्य है । ओसवाल महासम्मेलन के सम्बन्ध में भी यही बात थी । समाज बहुत दिनोंसे अनुभव कर रहा था । यथा समय सम्मेलन समाज का कर्त्तव्य है कि अपनी इस सृष्टि को वह फूलने फलने दे । सामाजिक संस्थाओं का जन्मदाता समाज ही होता है। किसी संस्था विशेष को जन्म देने के बाद समाज का कर्त्तव्य हो जाता है कि वह उस की वृद्धि तथा उन्नति की ओर पूरा २ ध्यान दे । जिस वृक्ष को उस ने लगाया है उसे पूर्ण रूप से सोंचता रहे जिस से उस की सुशीतल छाया तथा मधुर फल के उपभोग का अवसर मिले । संगठन के द्वारा ही हम अपने भविष्य को उज्ज्वल तथा गौरवपूर्ण बना सकते हैं। समाज के प्रत्येक बन्धु से नम्र निवेदन है कि वे तन मन धन से इस विराट उद्योग में सहयोग प्रदान करें तथा सम्मेलन के स्वीकृत प्रस्तावों को व्यवहारिक रूप में लाने के लिये यथासाध्य प्रयत्न करें। केबल आपकी सहायता के बल पर ही सम्मेलन की सफलता निर्भर है । अजमेर सं० १६८६ सन् १६३२ ई० इस की आवश्यकता भी हो गया । अब Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat समाज का नम्र सेवक अक्षय सिंह डांगी मन्त्री स्वागतसमिति, प्रथम अधिवेशन श्रीअखिल भारतबर्षीय ओसवाल महासम्मेलन www.umaragyanbhandar.com

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