Book Title: Nyayakumudchandra Part 1
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 10
________________ ( viii ) इस ग्रन्थ को प्रकाशित करने की मंजूरी ग्रन्थमाला की प्रबन्धकारिणी कमेटी से अब से लगभग 16 वर्ष पहले ली जा चुकी थी और उसी समय कुछ प्रेस-कापी भी करा ली गई थी; प्रबल इच्छा थी कि यह महान् ग्रन्थ प्रकाशित हो जाय; परन्तु. यथेष्ट मूल प्रतियों के प्राप्त न हो सकने और सुयोग्य सम्पादक के न मिलने से काम रुक गया और अब इतने लम्बे समय के बाद वह इच्छा पूर्ण हो रही है और जिस रूप में हो रही है उसे देखकर कम से कम मुझे तो यथेष्ट सन्तोष है। श्रद्धेय पं० सुखलाल जी के शब्दों में सचमुच ही इस ग्रन्थ के द्वारा दिगम्बरीय साहित्य में प्रकाशन कार्य का एक नया युग प्रारम्भ होता है। अब तक हमारा एक भी ग्रन्थ इस ढंग से सुसम्पादित होकर प्रकाशित नहीं हुआ है। जैनसमाज के असाधारण विद्वान् प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलाल जी के हम अत्यन्त कृतज्ञ हैं जिन्होंने इस ग्रन्थ को इस रूपमें सम्पादित करने के लिए सम्पादकद्वय को उत्साहित किया, अमूल्य सूचनायें दी, साधन-सामग्री जुटाने में हर तरह से सहायता दी और इस ग्रन्थ के लिए प्राक्कथन के रूप में हमारे सम्प्रदाय और उसके साहित्य के सम्बन्ध में अपने बहुमूल्य विचार उपस्थित किये। ___ इस ग्रन्थ के द्वितीय खण्ड के सम्पादन का कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है और प्रयत्न किया जा रहा है कि वह यथासम्भव शीघ्र ही प्रकाशित हो जाय / ___ ग्रन्थों के मूल्य के सम्बन्ध में कुछ शुभचिन्तकों ने शिकायत की है कि वह पहले की अपेक्षा ज्यादा रक्खा गया है / इसे हम स्वीकार करते हैं; परन्तु इसका कारण एक तो यह है कि पिछले ग्रन्थों के सम्पादन संशोधन और साधन-सामग्री जुटाने में पहले की अपेक्षा बहुत अधिक खर्च हुआ है, दूसरे संख्या में भी ये पांच-छह सौ से अधिक नहीं छपाये गये हैं, तीसरे अब सौ रुपया या इससे अधिक देने वाले सहायकों को प्रत्येक ग्रन्थ की एक एक प्रति बिना मूल्य देने का नियम बन गया है जिससे प्रत्येक ग्रन्थ की लगभग सौ * प्रतियाँ यों ही चली जाती हैं। इसके सिवाय दूकानदारों को कमीशन भी देना पड़ता है। ऐसी दशा में लागत बढ़ जाना अनिवार्य है और इससे मूल्य अधिक रखना पड़ता है। , पाठकों को विश्वास रखना चाहिए कि ग्रन्थमाला का उद्देश्य प्राचीन साहित्य का उद्धार करना है, कमाई करना नहीं; फिर भी यदि ग्रन्थमाला के फण्ड में इस बढ़े हुए मूल्य से कुछ अधिक धन आ जायगा तो वह ग्रन्थोद्धार के कार्य में ही लगेगा। हीराबाग, बम्बई) 3-7-38 ) निवेदकनाथूराम प्रेमी मन्त्री

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