Book Title: Nirvan Upnishad
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 195
________________ आनंद और आलोक की अभीप्सा, उन्मनी गति और परमात्म-आलंबन अभीप्सा मौजूद है। इसीलिए तो अकेलापन लगता है। एक आदमी कहता है कि बहुत अकेलापन लग रहा है। कल मुझे किसी ने खबर दी कि एक साधिका-मैं कहता हूं साधिका, अपनी तरफ से वह साधिका नहीं हो सकती—एक साधिका रोती हुई पाई गई, क्योंकि उसकी बाकी साथिनें चुप और मौन हो गई हैं। और उसने कहा, जब कोई बात ही न करेगा, तो यहां सात दिन कैसे गुजरेंगे! सात दिन बिना बात किए एकाकीपन लगेगा, अकेलापन लगेगा। मुश्किल मालूम पड़ेगी, क्योंकि हम दूसरे में अपने को उलझाए रखते हैं। इसलिए कोई अकेला नहीं होना चाहता। ___ यह बहुत मजे की बात है, आप अपना साथ कभी पसंद नहीं करते। आप खुद ही अपने को इतना पसंद नहीं करते कि अपना साथ पसंद करें। अपने साथ आनंदित होने का मतलब तो तभी हो सकता है, अब मैं अपने को चाहूं, प्रेम करूं, अपने को पसंद करूं। हम सब अपने को घृणा करते हैं। कहते हैं लोग, लेकिन सब अपने को घृणा करते हैं। इसलिए कोई अकेला नहीं होना चाहता, क्योंकि अकेले में अपने से ही साथ रह जाता है। मुल्ला नसरुद्दीन कम बात करना पसंद करता था। लोग लेकिन चकित थे, क्योंकि वह अकेले में भी कभी-कभी बहुत बात करता था। मित्र चिंतित हुए कि उसका दिमाग तो खराब नहीं हुआ जाता है। क्योंकि जब भी लोग होते, तब वह चुप बैठा रहता; और जब भी अकेला होता, तो बात करता। मित्रों ने एक दिन इकट्ठा होकर मुल्ला से पूछा कि बात तो बताओ, राज क्या है इसका? दिमाग तो खराब नहीं हो गया! जब हम आते हैं, तुम चुप हो जाते हो। जब हम चले जाते हैं, तो हमने दीवार और खिड़कियों से झांककर देखा है कि तुम अकेले में बात करते हो। तो मुल्ला ने कहा, आई वान्ट टु टाक विद ए वाइज़ मैन। एक बुद्धिमान आदमी से बात करना चाहता हूं। एंड आई वान्ट टु हियर ए वाइज़ मैन आलसो। और मैं एक बुद्धिमान की ही बात सुनना चाहता हूं। इसलिए अपने से ही बात करता हूं। पर अपने साथ हम होना नहीं चाहते। और कोई अपने साथ हो, तो वह हमें पागल लगेगा। वह मुल्ला नसरुद्दीन पागल लगा मित्रों को। अपने साथ मजा ले रहे हो, यह भी कोई बात हुई? मजा सदा दूसरे के साथ लिया जाता है। अपने ही साथ मजा ले रहे हो, दिमाग खराब हो गया मालूम होता है। लेकिन संन्यासी वही है, जो अपने साथ मजा लेने में समर्थ हो गया है। दूसरे की जरूरत न रही। अकेला ही काफी है—इनफ। इसका नाम है एकांत। अकेला ही काफी है, टु बी अलोन इज़ इनफ। और लोनलीनेस का कहीं कोई पता ही नहीं है। अकेलेपन का कहीं कोई पता ही नहीं है कि मैं अकेला हूं। यह तो पता तभी चलता है, जब दूसरे की आकांक्षा मन में सरकती है कि दूसरा होना चाहिए था और नहीं है। दूसरे का अभाव अकेलापन पैदा करता है। अपना आविर्भाव एकांत पैदा करता है। दूसरे की मौजूदगी नहीं है, तो खलती है तो अकेलापन लगता है। और मैं मौजूद हूं पूरी तरह, इसका आनंद प्रकट होता है तो एकांत। ____ भाषाकोश में तो लोनलीनेस और अलोननेस एक ही हैं। लेकिन जीवन के कोश में एक नहीं हैं। जीवन के कोश में बड़ी उलटी बातें हैं। अगर कोई आदमी कहता है कि अकेलापन लगता है, तो जानना कि उसे एकांत का पता ही नहीं चला है। और कोई आदमी कहता है कि एकांत में हूं, दूसरे की याद ही नहीं आती, अपना ही होना पर्याप्त है, तो ऐसा एकांत मठ है संन्यासी का। वही उसका मंदिर है। वही 1857

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