Book Title: Nirvan Upnishad
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 313
________________ निर्वाण उपनिषद तो समाप्त हो जाता है, लेकिन निर्वाण निर्वाण उपनिषद के समाप्त होने । से नहीं मिल जाता है। निर्वाण उपनिषद जहां। समाप्त होता है, वहीं से निर्वाण की यात्रा शुरू होती है। इस आशा के साथ अपनी बात पूरी करता हूं कि आप निर्वाण की यात्रा पर चलेंगे, बढ़ेंगे।। और यह भरोसा रखकर मैंने ये बातें कही हैं कि आप सुनने को, समझने को तैयार होकर आए। थे। _मैंने जैसा कहा है और जो कहा है, उसमें अगर रत्तीभर भी अपनी तरफ से जोड़ने का खयाल आए, तो स्मरण रखना कि वह अन्याय होगा-मेरे साथ ही नहीं, जिसने निर्वाण उपनिषद कहा है, उस ऋषि के साथ भी।। आपके ध्यान करने की चेष्टा ने मुझे भरोसा दिलाया है कि जिनसे मैंने बात कही है, वे कहने योग्य थे। निर्वाण उपनिषद समाप्त! निर्वाण की यात्रा प्रारंभ!! -ओशो

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