Book Title: Nirvan Upnishad
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna
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निर्वाण उपनिषद
पैसा किसी को नहीं मिला। और लोग सोचते ही नहीं थे, कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि यह आदमी चुकता दान कर देगा।
तो वह एक बड़े मुकदमे में थे। भूल-चूक हो गई कुछ। जल्दी में थे, रात काम में उलझे रहे, फाइल न देख पाए। वह समझते थे कि अ के वकील हैं, थे ब के वकील । दो पार्टी में ब के वकील थे, अके वकील नहीं थे। भूल-चूक हो गई। तो अदालत में जाकर उन्होंने जो वक्तव्य दिया, उनका जो मुवक्किल था, उसका तो पसीना छूट गया, क्योंकि वह उसके खिलाफ बोल रहे थे। उसकी तो जान निकल गई, वह तो मर गया, क्योंकि अभी दूसरा तो खिलाफ बोलने ही वाला है। जब अपना खिलाफ बोल रहा है, तब तो कोई उपाय न रहा। करोड़ों का मामला था, बड़ा मुकदमा था, किसी स्टेट का मुकदमा था। घबड़ाहट फैल गई। मजिस्ट्रेट भी चकित हुआ। विरोधी वकील भी घबड़ाया कि यह हो क्या रहा है ! किसी की समझ में न पड़े। लेकिन डाक्टर गौर को रोकने की हिम्मत भी किसी में नहीं कि कोई बीच में रोक दे ।
जब वह पूरा बोल चुके, तो सदा बोलने के बाद एक गिलास पानी पीते थे, जब वे पानी पी रहे थे, तब उनके असिस्टेंट ने कहा कि जरा भूल हो गई। आप अपने ही आदमी के खिलाफ बोल दिए। उन्होंने कहा, कोई फिक्र न कर । गिलास नीचे रखकर उन्होंने मजिस्ट्रेट से कहा कि अभी मैं वे बातें कह रहा था, जो मेरा विरोधी कहना चाहेगा। अब मैं इनका खंडन करता हूं। नाऊ आई बिगिन द रिफिटेशन। अभी तो मैंने वे दलीलें दीं, जो विरोधी देगा। अब मैं विरोध में खंडन शुरू करता हूं। और वे मुकदमा जीत गए ।
तर्क का कोई बहुत मूल्य नहीं है। जो तर्क नहीं जानते, उन्हीं को मूल्य मालूम पड़ता है। जो तर्क जानते हैं, वे समझते हैं, तर्क से फिजूल और कुछ भी नहीं है। लेकिन इतना तर्क को जो समझ लेता है, वह फिर जीवन में अनुभव की दिशा पर बढ़ता है, तर्क को छोड़ देता है। तर्क को जानने वाला बुद्धिमान व्यक्ति तर्क को छोड़ देता है और अतर्क्य अनुभव की तरफ जाता है। जो अभी तर्क ही कर रहा है, वह अभी बचकाना है, जुविनायल है। और अगर ऐसा बुद्धिमान पुरुष कभी तर्क का उपयोग करता है, तो सिर्फ इसीलिए ताकि अतर्क्य की तरफ आपको ले जाया जा सके। अन्यथा उपयोग नहीं करता है।
शक्तियां तटस्थ हैं। सारी शक्तियां दिव्य हैं। उनका कैसा उपयोग, इस पर सब निर्भर करता है। ऋषि कहता है, इन शक्तियों का क्षेत्र और पात्र के हिसाब से अनुसरण करना ही बुद्धिमानी है। समय, स्थान, स्थिति, इन सबको ध्यान में रखकर ! नहीं तो कई बार, कई बार शक्ति अपव्यय होती है, कई बार अपने ही विरोध में पड़ जाती है, कई बार घातक हो जाती है। और यह जो कहा है, क्षेत्र और काल, समय और स्थिति, स्थान और परिस्थिति, इनको देखकर। क्योंकि कोई भी नियम इस जगत में ऐब्सल्यूट नहीं है, निरपेक्ष नहीं है, सापेक्ष है। तो कहीं तो जहर भी अमृत हो जाता है— किसी काल और किसी क्षेत्र में । किसी रोग में जहर औषधि बन जाता है और किसी रोग में भोजन जहर हो जाता है।
तो अगर हमने अंधे की तरह अनुसरण किया सिद्धांतों का, तो वह बुद्धिमानी नहीं है। लेकिन हम करते हैं। हम सब अंधों की तरह अनुसरण करते हैं। बिलकुल अंधों की तरह। एक सिद्धांत को पकड़ लेते हैं लकीर के फकीर की तरह और फिर चाहे स्थिति बदले, समय बदले, काल बदले, हम नहीं बदलते। हम तो अपने सिद्धांत पर दृढ़ रहते हैं। यह मूढ़ता का लक्षण है। कोई सिद्धांत ऐसा नहीं है, जो काल और स्थिति के साथ बदल न जाता हो। लेकिन हम कहते हैं, सब बदल जाए, लेकिन हम सिद्धांत
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