Book Title: Nirvan Upnishad
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 297
________________ ब्रह्मचर्य और शांति जिनकी संपदा है। संपदा किसे कहें? हम जिसे कहते हैं, वह हम से छीनी जा सकती है। हम जिसे कहते हैं, मृत्यु तो निश्चित ही हमें उससे अलग कर देती है। और हम जिसे संपदा कहते हैं, उसके कारण सिवाय विपदाओं हमारे ऊपर और कुछ आता हुआ मालूम नहीं पड़ता है। ऋषि भी किसी बात को संपदा कहते हैं। वे उसे संपदा कहते हैं, जो हमसे छीनी न जा सके। वही संपत्ति है, उसी के हम मालिक हैं, जो हमसे छीनी न जा सके। जो हमसे छीनी जा सकती है, उसकी मालकियत नासमझी का दावा है। लेकिन हम तो जिन-जिन संपत्तियों को जानते हैं, वे सभी हमसे छीनी जा सकती हैं। क्या ऐसी किसी संपत्ति का हमें पता है, जो हमसे छीनी न जा सके ? बहुत उपनिषदयुगीन कथा है कि याज्ञवल्क्य अपनी सारी संपत्ति अपनी दोनों पत्नियों को सौंपकर संन्यस्त होना चाहता है। उसकी एक पत्नी तो राजी हो गई। आधी संपत्ति बहुत संपत्ति थी। लेकिन दूसरी पत्नी ने पूछा कि जो आप मुझे दे जा रहे हैं, यह क्या है ? याज्ञवल्क्य ने कहा, यह संपदा है। पत्नी ने कहा, संपदा को छोड़कर आप क्यों जा रहे हैं ? और अगर आप छोड़कर जा रहे हैं, तो आप किसकी तलाश में जा रहे हैं ? पति ने कहा, मैंने तो समझ लिया कि यह संपदा नहीं है। और असली संपदा की खोज में जाता हूं। तो पत्नी ने कहा, फिर असली संपदा की खोज में मुझे भी ले चलें। इस कचरे को मेरे लिए क्यों छोड़ जाते हैं ? और अगर आपको पता ही चल गया है कि यह संपदा नहीं है, तो मुझे देने की बात ही क्यों उठाते हैं? संपदा जिनके पास है, वे भलीभांति जान लेते हैं, उससे कुछ भी मिलता नहीं है, जो मूल्यवान है। जो भी उससे खरीदा जा सकता है, वस्तुतः उसका कोई मूल्य नहीं है। संपत्ति से जो खरीदा जा सकता है, उसका कोई भी ऐसा मूल्य नहीं है जो शाश्वत हो, नित्य हो, ठहरने वाला हो। लेकिन हम अपने खाली मन को भर लेते हैं। ऋषि कहता है, संन्यासी की संपदा क्या है? उसकी संपदा को वह कहता है, एक तो ब्रह्मचर्य है। उसका आचरण ऐसा होगा, जैसे स्वयं परमात्मा उसके भीतर विराजमान होकर आचरण करता हो। • यह ब्रह्मचर्य शब्द बहुत कीमती है। इसे तथाकथित नीतिवादियों ने बुरी तरह विकृत किया है, करप्ट किया है। क्योंकि जब भी कोई कहता है ब्रह्मचर्य, तो हमें तत्काल खयाल आता है, सेक्स कंट्रोल, कामवासना का नियंत्रण | ब्रह्मचर्य बहुत बड़ा शब्द है और कामवासना का नियंत्रण बहुत क्षुद्र और साधारण सी बात है। ब्रह्मचर्य बड़ा शब्द है । ब्रह्मचर्य शब्द का अर्थ होता है, ब्रह्म जैसी चर्या। ऐसे जीना, जैसे परमात्मा ही जी रहा हो । ब्रह्मचर्य बहुत विराट शब्द है और कामवासना का नियंत्रण अति क्षुद्र और साधारण सी बात है। लेकिन हमने इस विराट शब्द को इस बुरी तरह बिगाड़ा है कि पश्चिम में जब अंग्रेजी में अनुवाद करते हैं वे ब्रह्मचर्य का, तो कर देते हैं सेलिबेसी । पर उसका अर्थ बहुत और है।

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