Book Title: Nirvan Upnishad
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 305
________________ निर्वाण रहस्य अर्थात सम्यक संन्यास, ब्रह्म जैसी चर्या और सर्व देहनाश . उसके कारण हैं। क्योंकि शिक्षक को न तनख्वाह है ठीक, न कोई सम्मान है। लोग पूछते हैं, अच्छा मास्टर हो गए। यानी मतलब बेकार हो गए! आदमी डरता है बताने में कि हम मास्टर हैं। इससे तो कांस्टेबल कहता है, तो भी रीढ़ अकड़ जाती कि कांस्टेबल हैं। मास्टर हैं, तो वह ऐसा कहता है कि पिट गए, बेकार हो गए, जिंदगी बेकार गई, मास्टरी में गंवा दी। तो जाता ही मीडियाकर वर्ग है, मध्य-वृत्त वाला वर्ग जाता है। और जरा सा विद्यार्थी होशियार हो, तो शिक्षक पीछे पड़ जाता है। __ लेकिन भारत की दृष्टि यह थी कि शिक्षक किसी भी स्थिति में विद्यार्थी से पीछे नहीं पड़ना चाहिए। यह तभी हो सकता है, जब इतना लंबा जीवन का अनुभव हो। ___ऋषि कह रहा है कि जिन्होंने ब्रह्मचर्य जाना, गार्हस्थ्य जाना, जिन्होंने वानप्रस्थ जाना, इस जानने से ही वे जिस त्याग को उपलब्ध होते हैं, उसका नाम संन्यास है। इस जानने से ही, दिस वेरी नोइंग लीड्स टु रिनंसिएशन, यह जानना ही संन्यास बन जाता है। जिसने जान लिया जीवन को इतने-इतने पहलुओं से, वह जीवन से चिपका नहीं रह जाता। वह जान लेता है कि असार को पकड़कर रखने का क्या प्रयोजन है, तो छूट जाता है। और अंत में समस्त शरीरों का नाश हो जाता है और ब्रह्मरूप अखंडाकार में प्रतिष्ठा होती है। मनुष्य के सात शरीर हैं। एक शरीर, जो हमें दिखाई पड़ता है, यह है। फिर इसके भीतर और, और, और, सात'शरीरों की पर्ते हैं। एक शरीर तो भौतिक है, जो हमें दिखाई पड़ता है। और सूक्ष्म शरीर हैं, जो हमें दिखाई नहीं पड़ते, लेकिन जब कोई योग में प्रवेश करता है, तो वे दिखाई पड़ने शुरू होते हैं। एक-एक आदमी सात पर्तों से घिरा हुआ है, सेवेन लेयर्स। ये जो सात शरीर हैं हमारे, जब तक ये सातों के सातों न गिर जाएं, तब तक अखंड ब्रह्माकार स्थिति नहीं बनती है। अगर एक शरीर भी बच जाए पीछे, तो वह यात्रा जारी रखता है। अगर सातों शरीर हों, तो जन्म होता है अलग ढंग से। अगर एक ही शरीर रह जाए, तो भी जन्म होता है अलग ढंग से। भौतिक शरीर निर्मित नहीं होता, लेकिन जन्म की यात्रा जारी रहती है। जन्म तो उसी दिन मिटते हैं, जिस दिन हमारे भीतर कोई शरीर ही नहीं रह जाता। लेकिन कब यह घटना घटती है, जब कोई शरीर न रह जाए? यह तभी घटती है, जब भीतर कोई वासना न रह जाए। क्योंकि वासना शरीर को संगृहीत करती है, क्रिस्टलाइज करती है। वासना ही शरीर को संगृहीत करती है, इकट्ठा करती है। और हमारे भीतर वासनाओं के भी सात तल हैं, इसलिए हमारे भीतर सात शरीर हैं। उन सात शरीरों का विनाश हो जाता है। जब कोई व्यक्ति जानकर जीवन का त्याग कर देता है, तब वे सातों शरीर भस्मीभूत हो जाते हैं। वैसे व्यक्ति की फिर अखंड ब्रह्म के साथ सत्ता एक हो जाती है। फिर जन्म का कोई उपाय न रहा, क्योंकि जन्म लेगा कहां? जाएगा कहां? आवागमन की कोई सुविधा न रही। फिर तो प्रतिष्ठा उसमें हो गई, जो सरल है, आकाश की भांति जो फैला है सब ओर। उसके साथ एक होना हो गया। यही क्षण परम अनुभूति और परम आनंद का क्षण है, जब हमें जन्मने की जरूरत नहीं रह जाती, क्योंकि फिर मरने का कोई कारण नहीं रह जाता। और जब हमें शरीर ग्रहण नहीं करने पड़ते, तब हमें शरीरों से पैदा होने वाले कष्ट भी नहीं झेलने पड़ते। और जब इंद्रियां हमें नहीं मिलतीं, तब इंद्रियों से जो 2957

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