Book Title: Nirvan Upnishad
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 300
________________ निर्वाण उपनिषद जो उसको चढ़ा गए थे दान। भीड़ में खड़े थे छिपे हुए। सबको अंदाज था, फकीर पर पैसा तो बहुत होगा, जिंदगीभर लोग चढ़ाते रहे थे। था भी बहुत। एक बड़ी झोली में उसने सब भर रखा था। कई हीरे भी थे, मोती भी थे, सब थे। सोने के सिक्के भी थे, वह सब उसने भर रखा था। लेकिन उसने कहा कि भाग जाओ यहां से। मैंने सबसे ज्यादा गरीब आदमी को देने का दिल किया है। एक भिखारी ने कहा, लेकिन मुझसे ज्यादा गरीब कौन होगा? मेरे पास कल के लिए भी खाना नहीं है। तो उसने कहा कि मुझे जांच करनी पड़ेगी। तब मैं तय करूंगा। __ और इसी बीच सम्राट की सवारी निकली। हाथी पर सम्राट जा रहा है। फकीर ने चिल्लाकर कहा कि रुक। सम्राट रुका और उसने वह थैली उन भिखारियों की भीड़ के सामने सम्राट के हाथी पर फेंक दी। सम्राट ने कहा, क्या मजाक कर रहे हैं? मैंने तो सुना था, आपने सबसे ज्यादा गरीब को देने का तय किया है। फकीर ने कहा, तुमसे ज्यादा गरीब और कौन होगा? क्योंकि यहां जितने लोग खड़े हैं, इनकी आशाएं और आकांक्षाएं बहुत बड़ी नहीं हैं। तुम्हारे पास इतना बड़ा साम्राज्य है, लेकिन अभी भी तुम्हारी इच्छा का कोई अंत नहीं है, वह और आगे दौड़ी चली जा रही है। तुम बड़े से बड़े भिखारी हो, तुम्हारी भिक्षा कभी पूरी न होगी। तुम्हारा भिक्षा-पात्र ऐसा है कि कभी भर न पाएगा। तुम्हीं सबसे बड़े गरीब हो। यह मैं तुम्हें दे देता हूं। __गरीब कौन है ? जिसकी वासनाएं दुष्पूर हैं। अमीर कौन है ? जिसकी कोई वासना नहीं। गरीब कौन है? जिसकी मांग का कोई अंत नहीं। अमीर कौन है? जो कहता है, अब मांगने को कछ भी न बचा। राम जब अमरीका गए, तो वे अपने को बादशाह कहते थे। एक लंगोटी थी पास में, लेकिन कहते थे बादशाह राम। उन्होंने एक किताब लिखी है, उसका नाम है, बादशाह राम के छह हुक्मनामे। एक ' लंगोटी थी पास, हुक्मनामे बादशाह राम के! अमरीका का प्रेसिडेंट मिलने आया था राम को। और तो उसे सब ठीक लगा, एक बात जरा उसे बेचैन करने लगी। और उसने कहा कि और सब तो ठीक है, मगर आप अपने को खुद अपने मुंह से कहते हैं बादशाह राम। क्योंकि वे ऐसा कहते थे। वे ऐसा कहते थे कि बादशाह राम कल वहां गए। तो उसने कहा कि जरा पूछना चाहता हूं कि यह बादशाहत कौन सी है जिसकी आप बात कर रहे हैं? क्या है आपके पास, जिसके आप बादशाह हैं? राम ने कहा, जब तक कुछ भी मेरे पास था, तब तक मैं गुलाम था। क्योंकि जो भी मेरे पास था, वह मेरा मालिक हो गया था। अब मैं बिलकुल बादशाह हूं, क्योंकि अब मेरी कोई गुलामी न बची। और जब तक मेरे पास कुछ था, तब तक मेरी मांग कायम थी, अब मेरी कोई भी मांग नहीं है। अब तुम हीरे-जवाहरातों के ढेर लगा दो, तो मैं उन पर ऐसे चल सकता हूं जैसे धूल पर चल रहा हूं। अब तुम मुझे महलों में ठहरा दो, तो मैं ऐसे ठहर सकता हूं जैसे झोपड़े में सो रहा हूं। अब तुम दुनिया का मुझे बादशाह भी बना दो, तो मुझे ऐसा न लगेगा कि समथिंग हैज़ बीन ऐडेड; कुछ जुड़ गया मुझसे नया, ऐसा नहीं लगेगा, थे ही। सिर्फ आपको पता नहीं था, तो आपको सिंहासन पर बैठ जाने से पता चल गया। - संन्यासी सदा ही संपदा उसे कहता रहा है, जो परिपूर्ण तृप्ति से, टोटल फुलफिलमेंट से जन्मती है। 7290

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