Book Title: Nirvan Upnishad
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 232
________________ निर्वाण उपनिषद उठा रहा है, परकोटे घेर रहा है, तो भयभीत है, इसलिए इतना सुरक्षा का इंतजाम कर रहा है। एक आदमी तलवार बगल में लटकाए हुए चल रहा है, भयभीत है। हम बहादुरों की जो मूर्तियां बनाते हैं, तो उनके हाथ में तलवार जरूर रखते हैं। घोडों पर चढा देते हैं. तलवारें रख देते हैं. चौरस्तों पर खडे कर देते हैं। ये भय की मूर्तियां हैं। क्योंकि तलवार निर्भय आदमी के लिए कैसी आवश्यकता है? कहां है जरूरी? वह तलवार तो बताती है कि भीतर भय छिपा है। अगर हमें एटम बम बनाना पड़ा है, तो उसका कारण है कि आदमी आज जितना भयभीत है, इतना इसके पहले कभी भी नहीं था। हमारे अस्त्र-शस्त्र हमारे भय के अनुपात में विकसित होते हैं। जिस दिन आदमी निर्भय हो जाएगा, अस्त्र-शस्त्र फेंक दिए जाएंगे। उनकी कोई भी तो जरूरत नहीं है। अस्त्र-शस्त्र हमारे भय का विस्तार हैं। तो जितने अस्त्र-शस्त्र बढ़ते हैं, वे खबर देते हैं, बिलकुल आनुपातिक खबर देते हैं कि आदमी कितना भयभीत हो गया होगा कि एटम बम के बिना वह अपने को सुरक्षित अनुभव नहीं करता। बड़े से बड़े राष्ट्र-चाहे वह रूस हों और चाहे अमरीका और चाहे चीन-जिनके पास विराट शक्ति है, उनका बड़प्पन क्या है! उनका बड़प्पन यह है कि उनके पास विराट अस्त्र-शस्त्रों का ढेर है। लेकिन विराट अस्त्र-शस्त्रों का ढेर सिवाय भीतर के भय के और किसी बात की सूचना नहीं देता है। ___ और मजा यह है कि आप अस्त्र-शस्त्र कितने ही बढ़ाते चले जाएं, कोई भीतर का भय नहीं मिट जाता, बढ़ता चला जाता है। तो एक तरकीब यह हो सकती है कि अस्त्र-शस्त्र का त्याग कर दें, छोड़ तो भी जरूरी नहीं कि आप अभय को उपलब्ध हो जाएं। अगर अस्त्र-शस्त्र को आप छोडते हैं. तो आप दूसरे सूक्ष्म अस्त्र-शस्त्र बनाना शुरू करेंगे। आप कहेंगे, निर्बल के बल राम। अब यह भी अस्त्र है। कहना चाहिए, एटम से भी बड़ा। ___ तो गांधीजी अस्त्र-शस्त्र का उपयोग नहीं करते, लेकिन रोज प्रार्थना करते हैं, निर्बल के बल राम। मगर बल, चाहे वह एटम से आए और चाहे राम से आए, आना जरूर चाहिए। निर्बल होने को राजी नहीं हैं, बल कहीं से आना ही चाहिए। सूक्ष्म बल की खोज शुरू हो जाएगी। त्यागी वह है, जो सब खोज ही छोड़ देता है। और मजा यह है कि राम का बल तभी मिलता है, जब निर्बल इतना निर्बल होता है कि राम का बल भी उसके पास नहीं होता, कोई बल नहीं होता उसके पास। वह आयोजन छोड़ देता है, क्योंकि वह कहता है कि भयभीत होना असंगत है। जहां मृत्यु निश्चित है, वहां भयभीत होने की जरूरत क्या है? जहां मरना होगा ही, वहां अब भय का कारण क्या है? ___मैंने एक घटना सुनी है कि जापान में, जैसे राजस्थान में राजपूत कभी थे—अब तो नहीं हैं, कभी थे—ऐसा जापान में लड़ाकों का एक वर्ग था जो समुराई कहलाता है। वे जापान के राजपूत थे। एक बहुत प्रसिद्ध समराई कहते हैं. जापान में उसकी जोड का कोई तलवारबाज नहीं था—एक दिन घर लौट आया जल्दी, देखा कि उसका रसोइया उसकी पत्नी से प्रेम कर रहा है। तलवार खींच ली, लेकिन तभी उसे खयाल आया कि जब दूसरे के हाथ में तलवार न हो तब उसे मारना समुराई धर्म के खिलाफ है, क्षत्रिय के धर्म के खिलाफ है। तो उसने एक तलवार रसोइए को दी कि तू यह तलवार हाथ में ले और मुझसे जूझ। ___ रसोइए ने कहा, ऐसे ही मार डालो। इस जूझने का कोई मतलब ही नहीं है। यह और नाहक तुम अपने को समझाओगे कि तुम बड़े क्षत्रिय हो। मैंने कभी तलवार पकड़ी नहीं। मुझे पता नहीं तलवार पकड़ी कैसे V 222

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