Book Title: Nirvan Upnishad
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 283
________________ भ्रांति भंजन, कामादि वृत्ति दहन, अनाहत मंत्र और अक्रिया में प्रतिष्ठा पाय, अंतरात्मा में, वे सदा से जानते रहे हैं कि बाकी सारी वासनाएं कामवासना से ही पैदा होती हैं। ____मुल्ला नसरुद्दीन मरकर स्वर्ग के द्वार पर पहुंचा। सेंट पीटर ने, जो कि स्वर्ग के द्वारपाल हैं, उन्होंने मुल्ला नसरुद्दीन से पूछा कि जमीन पर काफी देर रहे-क्योंकि वह एक सौ दस वर्ष का होकर मरा-नसरुद्दीन से पूछा कि काफी देर जमीन पर रहे, कभी चोरी की, बेईमानी की? नसरुद्दीन ने कहा, कभी नहीं। कभी शराब पी, नशा किया? नसरुद्दीन ने कहा, इन बातों से सदा दूर रहे। स्त्रियों के पीछे भागते रहे? नसरुद्दीन ने कहा, कैसी बातें करते हैं आप! तो सेंट पीटर ने कहा, देन व्हाट यू वेयर डूइंग देअर फॉर सच ए लांग टाइम? एक सौ दस वर्ष तक तुम वहां कर क्या रहे थे जमीन पर? इतना लंबा वक्त! अगर स्त्रियों के पीछे भी नहीं दौड़ रहे थे, तो गजारा कैसे? वह ठीक है बात। जिसको हम जिंदगी कहते हैं, वह ऐसी ही दौड है। स्त्री परुषों के पीछे. परुष स्त्रियों के पीछे। और यह कोई आदमी ही कर रहा है, ऐसा नहीं; वृक्ष, पौधे, पशु, पक्षी सभी वही कर रहे हैं। लेकिन हां, आदमी होश से भर सकता है। यह उसके लिए एक अवसर है। इसलिए पशुओं को हम दोषी नहीं ठहरा सकते कि वे कामुक हैं। कामुकता के पार जाने का उनके पास फिलहाल कोई उपाय नहीं है। जिस जगह उनकी चेतना है, उस जगह से कोई रास्ता कामवासना के पार जाने के लिए नहीं निकलता। लेकिन आदमी को दोषी ठहराया जा सकता है, दोषी है, क्योंकि वह • पार जा सकता है। और जब तक पार न जाए, तब तक कोई तृप्ति, कोई संतोष, कोई आनंद उसे उपलब्ध होने को नहीं है। ऋषि कहते हैं, संन्यासी क्या करते रहते हैं- कामादि वृत्ति दहनम्। - जलाते रहते हैं, दग्ध करते रहते हैं काम की वृत्ति को। क्योंकि काम की वृत्ति ही संसार के फैलाव का मूल स्रोत है। सभी कठिनाइयों में दृढ़ता ही उनका कौपीन है। एक ही उनकी सुरक्षा है, एक ही उनका वस्त्र है-सभी कठिनाइयों में दृढ़ता। सभी कठिनाइयों में! कठिनाइयां होंगी ही. बढ ही जाएंगी। क्योंकि गहस्थ तो और तरह के इंतजाम कर लेता है तिजोरी है. बैंक बैलेंस है, मकान है, मित्र हैं, प्रियजन हैं, सगे-संबंधी हैं—बहुत इंतजाम कर लेता है। संन्यासी के पास तो कोई भी नहीं है, कुछ भी नहीं है। उसकी आंतरिक दृढ़ता के अतिरिक्त उसके पास और कोई उपाय नहीं है। जब कठिनाइयां आती हैं, तो गृहस्थ कठिनाइयों से लड़ने के लिए बाहर इंतजाम कर लेता है। संन्यासी के पास तो सिर्फ भीतरी ऊर्जा और शक्ति है। जब कठिनाइयां आती हैं, तब वह भीतर से ही अपनी ऊर्जा को दृढ़ करके कठिनाइयों से लड़ सकता है। और तो कोई उपाय नहीं। संन्यासी अकेला है। पर एक मजे की बात है कि जितना आप भीतर की शक्ति का उपयोग करते हैं कठिनाइयों में, उतने ही क्रमशः दृढ़ होते चले जाते हैं। और एक दिन ऐसा आ जाता है कि कठिनाइयां कठिनाइयां नहीं मालूम पड़ती; बड़ी सरलताएं, बड़ी सुगमताएं हो जाती हैं। क्योंकि वह तो तुलनात्मक है; जब आप भीतर चट्टान की तरह दृढ़ हो जाते हैं, तो बाहर की कठिनाइयों का कोई मूल्य नहीं रह जाता। ___ इसलिए एक बड़े मजे की घटना घटती है। गृहस्थ बहुत इंतजाम करता है बाहर कठिनाइयों से लड़ने का, कठिनाइयां बढ़ती चली जाती हैं, क्योंकि भीतर गृहस्थ दुर्बल होता चला जाता है। उसका रेजिस्टेंस 2737

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