Book Title: Nirvan Upnishad
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 286
________________ निर्वाण उपनिषद सिकंदर हिंदुस्तान से लौटता है। एक संन्यासी को ले जाना चाहता है यूनान। नंगी तलवारों से उस संन्यासी को घेर लिया जाता है और कहा जाता है कि तुम यूनान की तरफ चलो। वह संन्यासी कहता है कि मैंने जिस दिन संन्यास लिया, उसी दिन से मैंने किसी की आज्ञा माननी बंद कर दी है। तो सिकंदर कहता है, ये नंगी तलवारें देखते हो, ये अभी काटकर तुम्हें टुकड़े-टुकड़े कर देंगी। वह संन्यासी कहता है, जिस दिन मैंने संन्यास लिया, उस दिन जो काटा जा सकता था, उससे मैंने संबंध विच्छिन्न कर लिया। तुम काटोगे जरूर, लेकिन मुझे नहीं। तुम उसी को काटोगे, जिसे हम खुद ही अपने से काट चुके हैं। सिकंदर का इतिहास लिखने वाले लोगों ने लिखा है कि सिकंदर की तलवार और हाथ पहली दफे कंपा हुआ दिखाई पड़ा। हाथ उठाया भी और रुक गया। सामने एक हंसता हुआ आदमी खड़ा था! सिकंदर ने पूछा उस संन्यासी को–उसका नाम था ददामि-उससे पूछा कि क्या तुम्हारे मन में ऐसा नहीं लगता कि कैसा दुर्भाग्य तुम्हारे ऊपर आ गया? उस संन्यासी ने कहा, सौभाग्य की अपेक्षा ही हम नहीं रखते। जो आ जाए, हम उसके लिए राजी हैं। संघर्ष ही उनका आवास है। इस संघर्ष के प्रति कोई भी विरोध नहीं है, तो ही आवास बनेगा संघर्ष। अगर विरोध है, तो आवास नहीं बनेगा। संघर्ष का स्वीकार है, तभी तो वह आवास बनेगा। उसका विरोध भी नहीं है। क्योंकि संन्यासी मानता है, जीवन एक पाठशाला है, जहां संघर्ष शिक्षण की पद्धति है। जो जितना अपने को संघर्ष से बचा लेगा, वह उतना ही अपने को शिक्षित होने से बचा लेता है। सुना है मैंने कि एक अरबपति महिला एक समुद्र तट पर विश्राम करने के लिए उतरी। होटल के सामने उसकी कार रुकी। जितने कुली वहां खड़े थे, उसने कहा, सब आ जाओ! कुली भी थोड़े चकित हुए। इतना सामान तो गाड़ी में नहीं होगा। एक-एक सामान एक-एक कुली को पकड़ा दिया। और फिर एक छोटा बच्चा बचा। उस महिला का एक मोटा-तगड़ा बच्चा अभी आराम से बैठा था गाड़ी में। उसने उस कुली लड़के से कहा, तुम इसको कंधे पर उठा लो। उस लड़के ने कहा, लेकिन क्या इसके पैर खराब हैं? उस बढी औरत ने कहा. बैंक गॉड. हिज लेग्स आर आलराइट. बट बैंक गॉड ही विल हैव नेवर ट यूज़ देम। उसके पैर बिलकुल ठीक हैं, लेकिन भगवान की कृपा कि उसको कभी उनके उपयोग करने की जरूरत न पड़ेगी। उठाओ कंधे पर। अब अगर पैरों को उठाने की भी जरूरत न पड़े, तो पैर शक्ति खो देंगे। धीरे-धीरे शक्ति खो जाएगी। चलते रहें, तो ही उनकी शक्ति है। न चलें, उनकी शक्ति तिरोहित हो जाएगी। हम जिसका उपयोग करते हैं, वह सक्रिय हो जाता है। संन्यासी अपनी पूरी चेतना का उपयोग करता है जीवन के संघर्ष में। कहीं बचाव नहीं करता। कहीं आड़ नहीं लेता। कहीं छिपता नहीं। नसरुद्दीन सेना में भर्ती हुआ था। युद्ध चल रहा था जोर से। सभी जवान भर्ती कर लिए गए थे। नसरुद्दीन भी भर्ती हो गया था। जो जनरल था, वह नसरुद्दीन से बहुत प्रभावित हुआ। क्योंकि कैसी भी हालत हो, नसरुद्दीन सदा जनरल के पीछे खड़ा रहता। कितना ही संघर्ष हो, कितना ही उपद्रव हो, बम गिरते हों, तलवारें चलती हों, तीर आते हों, कुछ भी हो, आगजनी हो, नसरुद्दीन कभी जनरल का पीछा न छोड़ता। युद्ध समाप्त हुआ, तो जनरल ने कहा, नसरुद्दीन तुम बहुत बहादुर आदमी हो। इतना बहादुर 7276

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