Book Title: Nirvan Upnishad
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 244
________________ निर्वाण उपनिषद सुना है मैंने कि चंगेज जब किसी गांव पर हमला करता, तो उस गांव के सब बच्चों के सिर कटवाकर भालों में छिदवा देता। चंगेज चलता अपने घोड़े पर, उसके सामने दस-दस हजार बच्चों के सिर भालों पर छिदे रहते। किसी ने पूछा कि बच्चों को इन भालों पर छिदवाने का क्या मतलब है? ये बच्चे तुम्हारा क्या बिगाड़ रहे हैं? चंगेज ने कहा, पता कैसे चलेगा कि चंगेज इस गांव से गुजर गया? पीढ़ी दर पीढ़ी याद रहेगी कि चंगेज इस गांव से गुजरा था! ___चंगेज एक गांव को लूटकर गांव के बाहर जंगल में ठहरा हुआ है। गांव की वेश्याओं को बुला लिया है उसने नृत्य के लिए। रात, तीन बजे रात तक वह नृत्य देखता रहा। अंधेरी रात है। वेश्याओं ने कहा, हम यहीं रुक जाएं? रात बहुत अंधेरी है और गांव तक जाना और निर्जन वन। चंगेज ने कहा, घबराओ मत। सैनिकों से कहा कि आगे बढ़ो और जिन-जिन गांव से इनको गुजरना हो, उनमें आग लगा दो। दस गांव में आग लगा दी गई। वेश्याएं रोशनी में वापस अपने गांव लौट गईं। किसी ने कहा कि इतनी सी छोटी बात के लिए! वेश्याओं को चार सिपाहियों के साथ भी भेजा जा सकता था। चंगेज ने कहा, याद कैसे रहेगा कि वेश्याएं चंगेज के घर से वापस लौट रही थीं! एक तामसिक शक्ति है, जिसका मजा यही है कि वह आपको धूल चटा दे, जमीन पर गिरा दे, और बता दे कि मैं हूं। निर्मल शक्ति वह है, जो आपको कभी नहीं बताती कि मैं हूं। आप ही उसे खोजें, तो बामुश्किल खोज पाते हैं। बामुश्किल! आपको ही खोजने जाना पड़ता है, फिर भी बामुश्किल खोज पाते हैं। निर्मल शक्ति ऐसी अनुपस्थित होती है, जैसे परमात्मा अनुपस्थित है। पर ऐसी निर्मल शक्ति नियम से पैदा नहीं होती, आयोजना से पैदा नहीं होती, संगठना से पैदा नहीं होती। ऐसी शक्ति परम अनियामकपन में रहने से पैदा होती है। संन्यासी परम अनियामकपन को ही अपना सत्र. अपनी मर्यादा. अपना नियम मानता है। स्वयं प्रकाश ब्रह्म में शिव-शक्ति से संपटित प्रपंच का छेदन करते हैं। ऐसे अनियामकपन को उपलब्ध हुई ऊर्जा, यह जो विराट प्रपंच है, इसको छेदकर परम ब्रह्म में प्रवेश कर जाती है। अगर जगत में कुछ बनाना हो तो तामसिक शक्ति चाहिए-दूषित, अंधेरी, ब्लैक। अगर इस जगत के पार जाना हो तो शुभ, ह्वाइट, निर्मल, शांत, पगध्वनि-शून्य शक्ति चाहिए। अगर जगत में कुछ करना हो, तो अनुशासन के बिना नहीं होगा; और अगर जगत के प्रपंच के पार यात्रा करनी हो, तो सब अनुशासन छोड़कर परम अनुशासनहीनता में, परम अनुशासनमुक्ति में प्रवेश करना पड़ता है। __ लेकिन यह वही कर सकता है, जो भयभीत नहीं है, मोहग्रस्त नहीं है, क्रोधी नहीं है, शोकग्रस्त नहीं है। वही कर सकता है। नहीं तो, भयभीत तो नियम बनाएगा। नीत्से ने एक बहुत अदभुत बात कही है। नीत्से ने कहा है कि दुनिया में जो भी नियम बनाए गए हैं, वे कमजोर लोगों ने बनाए हैं, द वीकलिंग्स। ___ इस बात में थोड़ी सच्चाई है। शक्तिशाली क्यों नियम मानकर चले! शक्तिशाली कभी चलता भी नहीं रहा नियम मानकर। लेकिन निर्बल लोग भी हैं। अगर नियम न हो, तो निर्बल कहां टिकेंगे? तो निर्बल इकट्ठे होकर नियम को बनाते हैं। निर्बल की भीड़ इकट्ठी हो जाए, तो सबल से ज्यादा सबल हो जाती है। नीत्से कहता था, डेमोक्रेसी इज़ एन एफर्ट टु डीथ्रोन द पावरफुल। लोकतंत्र है, वह शक्तिशालियों 7234

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