Book Title: Nirvan Upnishad
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 280
________________ निर्वाण उपनिषद बात कर रहे हैं, कठिनाई वहीं है और बाप अभी भ्रमों के बीच जीना चाहता है। बुद्ध की पत्नी ने अपने बेटे को कहा कि राहुल, अपने बाप से वसीयत मांग ले। ये तेरे बाप खडे हैं। व्यंग्य गहन था। बुद्ध के पास तो कुछ भी न था देने को। लेकिन पत्नी रोष में थी। यह आदमी छोड़कर भाग गया था। बेटे ने तो पहली दफा ही बुद्ध को होश में देखा था, क्योंकि बेटा तो पहले ही दिन का था, पैदा ही हुआ था, तब बुद्ध घर से निकल गए थे। बारह साल बाद लौटे हैं। तो राहुल को सामने खड़ा करके उनकी पत्नी ने कहा कि ये रहे तुम्हारे पिता, जिन्होंने तुम्हें जन्म दिया। भाग गए जन्म देकर। अब मिले हैं, मौका मत चूकना। फिर भाग जाएंगे। इनसे ले लो वसीयत कि मेरे लिए क्या देते हो जगत में! मुझे पैदा कर दिया, तो है क्या? बुद्ध की पत्नी जो व्यंग्य कर रही है, वह भ्रमों की दुनिया का व्यंग्य है। लेकिन बुद्ध ने कहा कि मेरे निकट आ, बड़ी संपदा मेरे पास है, वह मैं तुझे देता हूं। और जो दिया, वह भिक्षा-पात्र था। और आनंद को कहा, आनंद संन्यास में दीक्षित करो राहुल को। पत्नी तो कंप गई, रोने लगी, लेकिन राहुल दीक्षित हो चुका था। बुद्ध ने कहा, जो मेरे पास श्रेष्ठ है, वही तो मैं दूं। जो संपदा है, वही मैं दूं। जिसको छोड़ गया था, वह विपदा थी। अब मैं संपदा लेकर आया हूं। वही मैं देता हूं। बुद्ध के बाप रोने लगे और उन्होंने कहा कि तू बर्बाद करके रहेगा। अकेला तू मेरा बेटा था। तेरे जाने से भारी उपद्रव हुआ। अब तेरा बेटा ही मालिक है सारे साम्राज्य का। इसको भी तू संन्यासी कर रहा है। बुद्ध ने कहा, आप भी राजी हो जाएं। क्योंकि यह साम्राज्य पाकर आपको क्या मिला? मुझे छोड़कर क्या खो गया? और यह मेरा बेटा भी इसी चक्की में पिसता रहे, तो क्या मिल जाएगा? मैं इसे संपदा देता हूं। __ लेकिन सबको लगा कि बुद्ध भारी अन्याय कर रहे हैं। सारे गांव में दुख की लहर फैल गई कि बारह साल के लड़के को दीक्षा दे दी। हद अन्याय है। लेकिन बुद्ध जहां जीते हैं, वहां भ्रमों का जगत नहीं है। संन्यासी चौबीस घंटे भ्रम तोड़ने में लगा रहता है। और भ्रम टूटते हैं, तो ही तीन गुणों के पार यात्रा शुरू होती है। कामवासना आदि वृत्तियों का दहन करना-कामादि वृत्ति दहनम्। यह दहन शब्द बहुत अदभुत है। दमन नहीं, दहन। दबाना नहीं, जला डालना, राख कर देना। जैसे एक बीज है, बीज को दबाने से बीज नष्ट नहीं होता। आपको पता है, दबाने से ही अंकुरित होता है। न दबाओ. तो बीज ही रह जाए। दबा दो जमीन में, अंकर बन जाए। और जब बीज अंकरित होता है. तो एक बीज से हजार-लाख बीज पैदा हो सकते हैं। जब तक बीज बीज रहता है, एक बीज है। जब अंकुरित होता है, तो लाख हो सकते हैं। बीज को दबाने की भूल भर मत करना, नहीं तो एक बीज के लाख बीज हो जाएंगे। ___ संन्यासी दबाने में नहीं लगता, नाट इन सप्रेशन। फ्रायड ने तो अभी इस सदी में आकर कहा कि सप्रेशन, दमन जो है, वह रोग है। ऋषि सदा से कहते रहे हैं कि दमन रोग है। दमन से कुछ होगा नहीं। दबाकर क्या होगा? जिसे मैं दबाऊंगा, वह मेरे भीतर घुस जाएगा, और गहरे में उतर जाएगा और अचेतन में जकड़ जाएगा। जिसे मैं दबाऊंगा, वह मेरी गर्दन को और जोर से पकड़ लेगा। मुल्ला नसरुद्दीन के घर कोई मेहमान भोजन करने को आने को है। मेहमान बड़ा आदमी है। 7270

Loading...

Page Navigation
1 ... 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314