Book Title: Nirvan Upnishad
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 256
________________ निर्वाण उपनिषद नहीं पड़ती। एक मित्र चला आ रहा है और अचानक आप देखते हैं कि मित्र घोड़ा हो गया, तो भी आपके मन में यह सवाल नहीं उठता कि यह आदमी एकदम से घोड़ा कैसे हो गया! सपने में यह भी स्वीकार हो जाता है। एक क्षण को झपकी लगती है, वर्षों के सपने देख लेते हैं। आंख खुलती है, घड़ी में क्षण ही बीता होता है, लेकिन सपने में वर्ष-वर्ष बीत गए मालूम होते हैं। सपने में याद नहीं रह जाता आपको उसका, जो आप जागे हुए थे। वह द्वार बंद हो गया। ___ कंपार्टमेंट्स हैं। जागने के बाद जैसे ही आप सपने में गए, जागने का द्वार बंद हो गया। जागने के सब तर्क, जागने की सब विचारधारा, सब समाप्त हो गई। स्वप्न की दूसरी दुनिया शुरू हुई। अब आप उससे आइडेंटीफाई हो जाते हैं, उसके साथ एक हो जाते हैं। अब आप एक दूसरी दुनिया के साथ एक हैं। वह दुनिया मिट गई। ___ अगर आप राजा थे, तो भिखारी हो सकते हैं सपने में, इससे कोई अड़चन न आएगी। और अगर रंक थे, तो राजा भी हो सकते हैं सपने में, इससे भी कोई अड़चन न आएगी। कोई कोना चेतना का यह न कहता हुआ मालूम पड़ेगा कि मैं तो राजा था जागकर, यह भिखारी कैसे हो गया! यह नहीं हो सकता। नहीं, याद ही नहीं आएगा। वह द्वार बंद हो गया। वह स्मृति का पर्दा गिर गया। वह नाटक का अंक समाप्त हुआ। यह दूसरी बात शुरू हो गई। अब आप इसमें ही एक हो गए। फिर यह सपना भी छूट जाता है। गहरी नींद आ जाती है। तब तीसरी दुनिया में आप प्रवेश कर जाते हैं। गहरी निद्रा में जो होता है, वह आपको कुछ भी याद नहीं रह जाता। सपने में भी जो होता है, वह भी पूरा याद नहीं रह जाता। बहुत आंशिक, एक या दो प्रतिशत। वह भी दस-पंद्रह मिनट से ज्यादा याद नहीं रहता सुबह जागने के बाद। थोड़ी सी ओवरलैपिंग हो जाती है। आखिरी सपना सुबह जो चलता होता है, . उसकी थोड़ी सी आवाज गूंजती रह जाती है और जागना हो जाता है। तो थोड़ी सी याददाश्त रह जाती है। __इसलिए जो सपने आप सुबह लोगों को बताते हैं कि आपने देखे, बहुत भरोसे से मत बताना कि आपने देखे। बहुत सा तो उसमें आपने सोच लिया बाद में, जो देखा नहीं था। बहुत सा आप भूल गए, जो देखा था। इसलिए सुबह सपने बहुत ही ऐसे मालूम पड़ते हैं कि ये कैसे हो सकते हैं! उनके बहुत से हिस्से छूट गए, भूल गए, स्मृति के बाहर हो गए। असल में ड्रीम मेमोरी अलग है, आपके भीतर स्वप्न की स्मृति अलग इकट्ठी होती है। जागने की स्मृति अलग इकट्ठी होती है। निद्रा की स्मृति अलग इकट्ठी होती है। और तीनों स्मृतियों का बहुत बाउंड्री पर ही, सीमांत पर ही मिलन होता है, अन्यथा कोई मिलन नहीं होता है। आपको गहरी नींद के बाद इतना ही याद रह जाता है कि खूब अच्छी नींद आई, और कुछ याद नहीं रह जाता। __ लेकिन जो इन तीन खंडों से गुजरता है, वह चौथा? उसकी तो हमें बिलकुल ही स्मृति नहीं है। उसका तो हमें कोई खयाल ही नहीं है। उसका खयाल इसीलिए नहीं है कि जब भी जो हमारे सामने होता है, उसी के साथ हम एक हो गए होते हैं। उसकी स्मृति तो तभी आएगी, कि जो हमारे सामने हो, उसके साथ हम अपनी पृथकता को कायम रख पाएं। तो जो भी देखें, जो भी जानें, जो भी अनुभव करें, उसके साथ एक दूरी को बनाए रखें, तो यह संन्यास की स्थिति कभी अनुभव में आएगी, जहां तुरीय ब्रह्म ही यज्ञोपवीत, तुरीय ब्रह्म V246

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