Book Title: Nirvan Upnishad
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna
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सम्यक त्याग, निर्मल शक्ति और परम अनुशासन मुक्ति में प्रवेश
जाती है। तुम क्षणभर में मुझे मार डालोगे। तुम ऐसे ही मार डालो, यह और बहाना क्यों लेते हो?
लेकिन समुराई ने कहा कि यह तो नियमयुक्त नहीं है किसी को ऐसे मार डालना। तो मैं सदा के लिए कलंकित हो जाऊंगा और समुराई की बदनामी होगी कि एक निहत्थे आदमी को मार दिया। तुझे मैं समय दे सकता हूं। तू चाहे तो छह महीने तलवार चलाना सीख ले। उसने कहा कि वह कुछ न होगा। छह महीने क्या छह जन्म सीखू, तो भी मैं तुम्हारे सामने तलवार नहीं चला सकता, यह मुझे भलीभांति पता है। पूरे मुल्क में तुम्हारे मुकाबले कोई आदमी नहीं है। तो समुराई ने कहा, फिर मरने के लिए तैयार हो जा।
उस रसोइए ने सोचा कि एक उपाय कर लेने में हर्ज क्या है। जब मरना ही है, तो नहीं पता है तलवार का पकड़ना, लेकिन हर्ज क्या है अब। तो उसने कहा, फिर ठीक है मैं तलवार...दे दे तलवार। समुराई ने सोचा भी न था कि रसोइया इतने जोर से लड़ेगा। लेकिन जब मृत्यु सुनिश्चित हो, तो भय मिट जाता है। व्हेन डेथ इज़ डेफिनिट, फियर डिसएपीयर्स। भय तो तभी तक रहता है जब मृत्यु अनिश्चित होती है। रसोइए की मृत्यु तो निश्चित थी। तलवार उठाकर उलटे-सीधे हाथ चलाने उसने शुरू कर दिए।
समराई तो घबड़ाया, क्योंकि नियम के विपरीत तलवार चला रहा था वह। वह डरा. क्योंकि वह लड़ा था सदा-नियम थे, मर्यादाएं थीं, ढंग थे—जानता था कि दूसरा आदमी क्या वार करेगा। एक-एक वार परिचित था। लेकिन यह रसोइया तो ऐसे वार करने लगा, जो तलवार के शास्त्र में कहीं लिखे ही नहीं हैं। और समुराई के लिए तो जीवन अभी शेष था। रसोइए का जीवन समाप्त हो गया था। समुराई बड़ा बहादुर लड़ाका था, लेकिन भय भीतर था। क्योंकि मौत निश्चित न थी। रसोइया सिर्फ रसोइया था, लेकिन मौत इतनी निश्चित थी कि भय का कोई कारण न था।
थोडी ही देर में रसोइए ने समराई को दीवार से टिका दिया। छाती पर तलवार रख दी। समराई ने कहा. माफ कर। मगर त ऐसा लड़ाका है, यह मैंने कभी सोचा भी न था। उसने कहा, लड़ाका मैं बिलकुल नहीं हूं। यह तो मौत के सुनिश्चित हो जाने से हुआ है। ___ संन्यासी जानता है, मौत सुनिश्चित है, भय कैसा! भय का कोई अर्थ ही नहीं है। इरेलेवेंट, असंगत है। जो होना ही है, वह एक अर्थ में हो ही गया। अब भय कैसा! ___मोह को हम फैलाते हैं क्यों? क्योंकि अकेले हम काफी नहीं हैं। दूसरा हो साथ, तीसरा हो साथ, अपने लोग हों, तो भरे-भरे लगते हैं। लेकिन संन्यासी जानता है कि अकेला होना नियति है, टु बी अलोन इज़ द डेस्टिनी, कोई उपाय नहीं है दूसरे के साथ होने का। है ही नहीं उपाय। चाहे पत्नी बनाओ, चाहे पति बनाओ, चाहे मित्र बनाओ, पिता, बेटा, दूसरा दूसरा ही रहेगा। कोई उपाय नहीं, कोई मार्ग नहीं है। अकेले-अकेले हैं। अकेला होना नियति है। धोखा दे सकते हैं दूसरे को साथ रखकर कि नहीं, अकेले नहीं हैं। ___और धोखे में तो हम बड़े कुशल हैं। आदमी अंधेरी गली से गुजरता है तो सीटी बजाने लगता है। कोई नहीं है, मालूम है कि हम ही सीटी बजा रहे हैं। लेकिन अपनी ही सीटी सुनकर ताकत आती मालूम पड़ती है। आदमी गाना गाने लगता है। अपना ही गाना सुनकर ऐसा लगता है कि अकेले नहीं हैं। आदमी के धोखे का तो कोई अंत नहीं है।
अकेला है आदमी, इसलिए मोह को फैलाता है, बांधता है, भ्रम खड़े करता है कि अकेला नहीं हूं,
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