Book Title: Nirvan Upnishad
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 221
________________ अंतर-आकाश में उड़ान, स्वतंत्रता का दायित्व और शक्तियां प्रभु-मिलन की ओर नहीं बदलेंगे। सिद्धांत तो हमारा अटल है। ऐसे अटल सिद्धांत बुद्धिमानी का लक्षण नहीं है। कृष्ण जैसा आदमी सिद्धांतों की तरलता को जानता है। कृष्ण को भी पता है कि अहिंसा बहुमूल्य है, परम सिद्धांत है, भलीभांति पता है। लेकिन अर्जुन को हिंसा के लिए तत्पर करते हैं, क्योंकि काल और क्षेत्र बिलकुल भिन्न हैं। क्योंकि सवाल अहिंसा का नहीं है इस जगत में, इस जगत में कृष्ण के सामने सवाल यह था कि अर्जुन से जो हिंसा होगी, वह हिंसा दुर्योधन से होने वाली हिंसा से बेहतर होगी। यह सवाल नहीं है। चुनाव अहिंसा और हिंसा के बीच नहीं है, चुनाव सदा कम हिंसा और ज्यादा हिंसा के बीच है। चुनाव अच्छाई और बुराई के बीच नहीं है, चुनाव सदा कम बुराई और ज्यादा बुराई के बीच है। तो लेसर ईविल, वह जो कम से कम बुरा है, उसे चुनना ही पड़ेगा इस जगत में, व्यवहार में चारों ओर जो फैलाव है जीवन का उसमें। ___इसलिए कृष्ण को अहिंसक मानने वाले लोग सदा बड़ी दुविधा में देखे गए हैं। जैनों ने तो नर्क में डाला है। कंसीडर्डली, काफी सोच-विचारकर ऐसा किया है। गांधीजी को भी बड़ी मुसीबत थी कृष्ण से। गीता को माता कहते थे, लेकिन माता को ऐसे कपड़े पहनाते थे जो बिलकुल उनके अपने थे। उनका गीता से कोई संबंध न था। . गांधीजी को अड़चन होती थी। अहिंसा की बात करनी और गीता को माता कहना बिलकुल इनकंसिस्टेंट, असंगत बातें हैं। अहिंसा को परम धर्म कहना और हिंसा के परम व्याख्याकार कृष्ण, जिन्होंने हिंसा को ऐसा सबल बल दिया, तो कुछ तालमेल नहीं था। पर तालमेल बिठाया जा सकता है। तर्क कुशल है। गांधीजी कहते थे कि युद्ध कभी हुआ नहीं। यह युद्ध तो सिर्फ मिथ है। ये कौरव और पांडव कभी वास्तविक रूप से लड़े नहीं। कौरव तो बुराई के प्रतीक हैं, पांडव भलाई के प्रतीक हैं। यह तो आदमी के भीतर जो शुभ और अशुभ की वृत्तियां हैं, उनकी लड़ाई है। यह युद्ध कभी हुआ नहीं। ___यह ट्रिक उपयोग की गई, तो फिर दिक्कत न रही। बुराई से लड़ने में कोई हर्जा नहीं है। बुराई से लड़ने में हिंसा भी नहीं है। लेकिन यह बात झूठ है। यह युद्ध हुआ है। और कृष्ण बुराई और भलाई के बीच ही लड़ाई नहीं करवा रहे हैं, यह युद्ध बहुत वास्तविक हुआ है। लेकिन कृष्ण को समझना हो, तो जो बात समझनी पड़ेगी, वह यह ऋषि जो कह रहा है, वह बात है। कृष्ण भी कहते हैं कि अहिंसा परम धर्म है, लेकिन वे कहते हैं कि अहिंसा परम धर्म होते हुए भी जीवन में सीधा चुनाव कभी नहीं आता है हिंसा और अहिंसा का। जीवन में चुनाव सदा आता है कम हिंसा और ज्यादा हिंसा का। तो कम हिंसा को चुनना अहिंसक का लक्षण है। इसलिए वह कम हिंसा को चुनने को राजी हैं। और अहिंसा के नाम से कम हिंसा से भी भाग जाना सिर्फ कायर का लक्षण है। तो ऋषि कह रहा है कि काल और क्षेत्र, परिस्थिति का पूरा का पूरा हिसाब रखकर जो सिद्धांतों का अनुसरण करता है, वही बुद्धिमान है। और नहीं तो सिद्धांतों का अनुसरण...। मैंने सुना है, पंचतंत्र में एक बहुत प्रसिद्ध कथा है कि चार बहुत बुद्धिमान पंडित काशी से वापस लौटते हैं। बारह वर्ष काशीवास करके ज्ञानी बनकर वापस लौटते हैं। चारों परम ज्ञानी हैं अपने-अपने शास्त्रों के, स्पेशलिस्ट। और जैसे स्पेशलिस्ट खतरनाक होते हैं, वैसे ही खतरनाक हैं। क्योंकि 2117

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