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नय दर्पण
मंगलाचरण
खण्ड ज्ञान के पक्षपात तज, एक अनेक लखा प्रत्यक्ष । त कठोरता ज्ञान सरलता, अनेकान्त की व्यापकता लख || अन्तर तम हर अन्तर बल से, ज्ञान कला विकसी जगमग । चन्द्र पार्श्व अरु बाहूबलि को, नित मस्तक हो नत शत-शत ||
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पक्षपात व एकान्त
दिनाक २२-२३/६/६०
प्रवचन नं. १
१. पक्षपात का विष २.
३.
६.
८.
४.
पक्षपात का, कारण आगम में सब कुछ नही
अनेकान्त वाद का जन्म |
वचनों में अन्तरक भावों की झलक कुछ और भी हैं ५. वैज्ञानिक बन ७. कोई भी मत सर्वथा झूठ नही
raat अन्तर प्रकाश से सकल विश्व का एक क्षण मे अवलोकन १ पक्षपात कर लेने के कारण समस्त पक्षों से अतीत, हे परम गुरु ! का विष मेरे भी हृदय के पक्षपातों को विनष्ट कीजिए, जिन पक्षपातों के कारण कि मेरा हृदय इतना कड़ा बना हुआ है कि मुझे आज किसी की बात सुनने तक की भी सामर्थ्य नहीं है, जिसके कारण कि मैं हित के आश्रय पर भी अपना अहित ही कर बैठता हूँ । इन पक्षपातों के कारण मैने अपना ज्ञान इतना जटिल बना लिया है तथा इसे इतना सीमित व संकुचित कर लिया है, कि इसमें किसी भी नई बात को,