Book Title: Nay Darpan
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Premkumari Smarak Jain Granthmala

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Page 14
________________ -(३) हीरालाल जी सा काशलीवाल (श्री तिलोकचंद जी कल्याणमल जी) एवं लघुभ्राता श्रीमान् सेठ देवकुमारसिंह जी काशलीवाल एम ए. ( श्री औकार जी कस्तूरचन्द जी ) तथा बहनोई श्रीमान् सर सेठ भागचदजी सोनी, अजमेर आदि समाजमान्य एवं प्रसिद्ध महानुभाव है । सं. १९५६ मे सौ० प्रेमकुमारी जी को अकस्मात शरीर मे सामने की ओर गठान उठी थी जिसका आपरेशन बंबई में हो गया था। उस समय से डॉक्टरो को केसर का संदेह हो गया था। श्रीमती सौ. प्रेमकुमारी जी, यह मालूम होते ही अपना पूरा समय धर्माराधन मे देने लगी थी। सं० १९५८ की फर्वरी मे जब चि० विद्युल्लताबाई के विवाह का मंडप मुहूर्त था, फिर दूसरीबार आपके गठान उठी और उसी दिन आपको बंबई जाना पड़ा। अपनी सुपुत्री के २०-२१९५८ के विवाह के पश्चात ३ मार्च १९५८ को भैया साहब राजकुमार सिह जी ने आपको अपनी तृतीय पुत्रवधू सौ. उर्मिला देवी (सुपुत्री श्री० सेठ गणपतराय जी सेठी, लाडन्) के साथ अमेरिका के लिए बंबई प्रस्थान किया। लन्दन में जहा आपके तृतीय सुपुत्र श्री जम्बूकुमारसिंह जी अध्ययन कर रहे थे, दो दिन ठहर कर वहां से अमेरिका पहुँच कर ९ मार्च १९५८ को न्यूयार्क के बड़े हास्पिटल मे भती करा दिया। वहा आपकी जाच होकर आपरेशन करा दिया गया। कुछ दिन बाद डाक्टर से ज्ञात हुआ कि आराम नही होकर केसर का असर लीवर मे पहुंच गया है। रोग को असाध्य जानकर भेया साहब ने भारत लौटना निश्चित कर लिया था, पर सौ प्रेमकुमारीजी का स्वास्थ्य ज्यादा बिगड जाने से हवाई जहाज का रिजर्वेशन केसिल कराना पड़ा । भैया साहब ने अपनी विदुषी धर्मज्ञ 'धर्मपत्नी को धर्म में पूरा सावधान किया और आखिर ३० अप्रेल १९५८ की रात्रि को ११॥ बजे श्री १००८ चन्द्रप्रभ भगवान (आपके इन्द्र भवन मे स्थित जिन चेत्यालय की मूल नायक प्रतिमा)

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