Book Title: Nandisutram
Author(s): Malaygiri,
Publisher: Agamoday Samiti
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श्रीमलय. गिरीया
व्याख्या
सरस
नन्दीवृत्तिः
॥२३०॥
ROGRAMMERELESEAR
चपंचउवक्खाइआसयाई एगमेगाए उवक्खाइआए पंचपंचअक्खाइउवक्खाइआसयाई एवमेव सव्वावरेणं अद्धटाओं कहाणगकोडीओ हवंतित्ति समक्खायं, नायाधम्मकहाणं परित्ता धिकार:
ज्ञाताधिवायणा संखिज्जा अणुओगदारा संखिजा वेढा संखिजा सिलोगा संखिजाओ निज्जुत्तीओ कार: संखिज्जाओ संगहणीओ संखेजाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्ठयाए छट्टे अंगे दो सुअक्खंधा
सू.५०-५१ एगूणवीसं अज्झयणा एगूणवीसं उद्देसणकाला एगूणवीसं समुद्देसणकाला संखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं संखेज्जा अक्खरा अणंता पजवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासयकडनिबद्धनिकाइआ जिणपन्नत्ता भावा आघविजन्ति पन्नविनंति परूविजंति दंसिजति निदंसिजति उव. दंसिजंति, से एवं आया एवं नाया एवं विण्णाया एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ, से तं नायाधम्मकहाओ ६ । (सू. ५१) अथ केयं व्याख्या ?, व्याख्यायन्ते जीवादयः पदार्था अनयेति व्याख्या, 'उपसर्गादात' इत्यङ्प्रत्ययः, तथा चाह | ॥२३०॥ सूरिः-'विवाहे ण'मित्यादि, व्याख्यायां जीवा व्याख्यायन्ते शेषमानिगमनं पाठसिद्धं । 'से किं त'मित्यादि, अथ कास्ता ज्ञाताधर्मकथाः,ज्ञातानि-उदाहरणानि तत्प्रधानाधर्मकथा ज्ञाताधर्मकथाः, अथवा ज्ञातानि-जाताध्ययनानि
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