Book Title: Nandisutram
Author(s): Malaygiri,
Publisher: Agamoday Samiti
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करणा.
॥२३३॥
श्रीमलय
निजुत्तीओ संखेजाओ संगहणीओ संखेजाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए नवमे अंगे | अनुत्तरोपगिरीया
पातिका. नन्दीवृत्तिः एगे सुअक्खंधे तिन्नि वग्गा तिन्नि उद्देसणकाला तिन्नि समुद्देसणकाला संखेजाइं पयसहस्साई
प्रश्नव्यापयग्गेणं संखेज्जा अक्खरा अणंता गमा अणंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासयकडनिबद्धनिकाइआ जिणपन्नत्ता भावा आपविजंति पन्नविजंति परूविजंति दंसिजंति निदंसिजंति उवदंसिजंति, से एवं आया एवं नाया एवं विन्नाया एवं चरणकरणपरूवणा आघविजई, से तं अणुत्तरोववाइअदसाओ ९ ॥ (सू. ५४)
से किं तमित्यादि, अथ कास्ता अनुत्तरोपपातिकदशाः?, न विद्यते उत्तरः-प्रधानो येभ्यस्तेऽनुत्तराः-सर्वोत्तमा इत्यर्थः, उपपातेन निर्वृत्ता औपपातिका अनुत्तराश्च ते औपपातिकाश्च अनुत्तरौपपातिकाः, विजयाद्यनुत्तरविमानवा- २० सिन इत्यर्थः, तद्वक्तव्यताप्रतिबद्धा दशा अनुत्तरोपपातिकदशाः, तथा चाह सूरिः-अनुत्तरोववाइयदसा सुण मि
॥२३॥ इत्यादि पाठसिद्धं यावन्निगमनं, नवरमध्ययनसमूहो वर्गः, वर्ग २ च दश दशाध्ययनानि, वर्गश्च युगपदेवोदिश्यते इति ।
त्रय एव उद्देशनकालास्त्रय एव समुद्देशनकालाः, सङ्ख्येयानि च पदसहस्राणि-पदसहस्राष्टाधिकषट्चत्वारिंशल्लक्षप्रमाणानि वेदितव्यानि।
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