Book Title: Nandisutram
Author(s): Malaygiri,
Publisher: Agamoday Samiti
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देवलोगगमणाई सुहपरंपराओ सुकुलपच्चायाईओ पुणबोहिलाभा अंतकिरिआओ आघविजंति । विवागसुयस्स णं परित्ता वायणा संखिज्जा अणुओगदारा संखेजा वेढा संखेज्जा - लोग संखेजाओ निजुत्तीओ संखिजाओ संगहणीओ संखिजाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगgure इकारसमे अंगे दो सुअक्खंधा वीसं अज्झयणा वीसं उद्देसणकाला वीसं समुद्देसणकाला संखिज्जाई पयसहस्लाई पयग्गेणं संखेजा अक्खरा अनंता गमा अनंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासयकडनिबद्धनिकाइआ जिणपन्नत्ता भावा आघविजंति पन्नविजंति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिजंति उवदंसिजंति, से एवं आया एवं नाया एवं विन्नाया एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ, से तं विवागसुयं ११ (सू. ५६ )
अथ किं तद्विपाकश्रुतं ?, विपचनं विपाकः शुभाशुभकर्मपरिणाम इत्यर्थः तत्प्रतिपादकं श्रुतं विपाकश्रुतं, शेषं सर्वमानिगमनं पाठसिद्धं, नवरं सङ्ख्येयानि पदसहस्राणीति एका कोटी चतुरशीतिर्लक्षा द्वात्रिंशच्च सहस्राणि । से किं तं दिट्टिवाए ?, दिट्टिवाए णं सव्वभावपरूवणा आघविज्जइ, से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तंजहा - परिकम्मे १ सुत्ताई २ पुव्वगए ३ अणुओगे ४ चूलिआ ५, से किं तं परिकम्मे ?,
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विपाकश्रु.
सू. ५६ दृष्टिवादेपरिकर्माद्य
धिकारः
सू. ५७
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