Book Title: Nandisutram
Author(s): Malaygiri,
Publisher: Agamoday Samiti
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श्रीमलयगिरीया नन्दीवृत्तिः
॥२३७॥
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वीसा ९ पन्नरस १० अणुपवामि ॥८२॥ बारस इक्कारसमे बारसमे तेरसेव वत्थूणि । तीसा तेरसमे चोदसमे पणवीसाओ ॥ ८३ ॥ चत्तारि १ दुवालस २ अट्ठ ३ चेव दस ४ चैव चुलवत्थूणि । आइल्लाण चउण्हं सेसाणं चूलिआ नत्थि ॥८४॥ से तं पुव्वगए। से किं तं अणुओगे ?, अणुओगे दुहे पण्णत्ते, तंजहा- मूलपढमाणुओगे गंडिआणुओगे य, से किं तं मूलपढमाणुओगे ?, मूल पढमाणुओगे णं अरहंताणं भगवंताणं पुग्वभवा देवगमणाई आउं चवणाई जम्मणाणि अभिसेआ रायवरसिरीओ पव्वज्जाओ तवा य उग्गा केवलनाणुप्पयाओ तित्थपवत्तणाणि अ सीसा गणा गंणहरा अज्जपवत्तिणीओ संघस्स चउव्विहस्स जं च परिमाणं जिणमणपज्जवओहिनाणी सम्मत्तसुअनाणिणो अ वाई अणुत्तरगई अ उत्तरवेउव्विणो अमुणिणो जत्ति सिद्धा सिद्धी हो जह देसिओ जच्चिरं च कालं पाओवगया जे जहिं जत्तिआई भाई छेत्ता अंतगडे मुणिवरुत्तमे तमरओघविष्पमुक्के मुक्खसुहमणुत्तरं च पत्ते एवअ एवमाभावा मूल पढमाणुओगे कहिआ, सेत्तं मूलपढमाणुओगे । से किं तं गंडिआ -
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दृष्टिवादे - परिकर्माद्य
धिकार:
सू. ५७
१५
२०
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