Book Title: Nandanvan Kalpataru 2011 12 SrNo 27
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 17
________________ Jain Education International श्रीदेववाणीस्तोत्रम् डॉ. आचार्यरामकिशोरमिश्रः (१) यां भारत प्रथममत्र हि वेदवाणीं, ब्राह्मीं गिरां स्वहृदये मनसा स्मरामि । वन्दे वसन्ततिलकां च सरस्वतीं यां, सा शारदा जयताद् भुवि देववाणी ॥१॥ (२) या वीणया कुरुते श्रुतिगायनं वै, वेदस्य पुस्तकमथ स्वकरे च धत्ते । यस्याः कृपा जडमतिं सुमतिं करोति, ज्ञानप्रदा जयतु सा दिवि देववाणी ॥२॥ (३) वेदैः सदा विविधभाषणबोधदात्री, सान्निध्यदा विपदि सम्पदि हर्षशून्या । ज्योतिष्मती जगति चन्द्रसमोज्ज्वला या, सा वाक्प्रदा विजयतां भुवि देववाणी ॥३॥ (४) दत्ते समस्तजगते व्यवहारशक्तिं, लेखादिभाषणगिरं विदुषे ददाति । जीवाय या स्वलपितं प्रददाति चाण्या, सा ज्ञानदाऽत्र जयताद् भुवि देववाणी ||४|| (५) या जन्ममृत्युरहिताsत्र जरापहाच, वेदप्रिया सुफलदा च सुखप्रदा च । १० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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