Book Title: Naishadhiya Charitam 01 Author(s): Mohandev Pant Publisher: Motilal Banarsidass View full book textPage 4
________________ दो शब्द उत्कृष्ट काव्य होने के कारण श्रीहर्ष के नैषधीय चरित के पठन-पाठन का पहले से ही बड़ा प्रचार है। यह प्रायः सभी उच्च परीक्षाओं में पाठ्यपुस्तक के रूप में भी नियत रहता है। इसे पढ़ाते समय छात्र-वर्ग का मुझ से बार-बार आग्रह होता रहता था कि मैं अपने मालोचनात्मक ढंम से इस पर मी 'छात्रतोषिषो' लिखू। उनका भाग्रह मैंने मान तो लिया, लेकिन मेरे पास समय न था। कॉलेज से सेवा-निवृत्त होने पर ही मुझे समय मिला। इसी बीच दिल्ली के प्रसिद्ध प्रकाशक मोतीलाल-बनारसीदास वालों ने मी मुझ से इस पर टीका लिखने का अनुरोध किया और मैंने यह 'छात्रतोषिणी' लिख दी। यो सच पूछो तो नैषध काव्य पर नयी और पुरानी कितनी ही टीकार्य लिखी गई हैं। प्रसिद्ध पाश्चात्त्य विद्वान् डा० ऑफेक्ट ने अपनी ग्रन्यकार सूची में ( Catelogus Catalogorum) में नैषध के ये 23 टीकाकार गिना रखे है-मानन्दराजानक, ईशानदेव, उदयनाचार्य (न्यायाचार्य से भिन्न ) गोपानाथ, चाण्डू पण्डित, चारित्रवर्धन, जिनराज, नरहरि, नारायण, भगीरथ, भरतसेन, भवदत्त, मथुरानाथ, मल्लिनाथ, महादेव विद्यावागीश, रामचन्द्र शेष, वंशोवदन शर्मा, विद्याधर, विद्यारण्य योगो, विश्वेश्वराचार्य, मोदत्त, श्रीनाथ और सदानन्द / इनमें से सर्वप्रथम टीकाकार विद्याधर (1250-60 के लगमग ) हैं जिनको टोका 'साहित्यविद्याधरो' नाम से विख्यात है / इनके बाद 1353 ( वैक्रम ) में खिो चाण्डू पंडित की 'दोपिका' टीका आती है। ये वही चाण्डू पंडित हैं, जिन्होंने सायप्प से पहले ऋग्वेद पर मी माव्य लिखा था जो अब लुप्त है। तत्पश्चात् ईशानदेव, नरहरि, विश्वेश्वर, जिनराज, मल्लिनाथ और नारायण की टीकायें आती हैं। मल्लिनाथ की टोका का नाम 'जीवातु' और नारायण की टोका का नाम 'प्रकाश' है। ये दोनों आजकल प्रकाशित मिलती हैं। कुछ समय पूर्व सदानन्द को टीका मो मुझे मुद्रित मिठो थी, लेकिन वह अब नहीं मिलती। अन्य टीकाओं में बहुत सी लुप्त हो गई हैं। कुछ ऐसी हैं जो हस्तलिखित रूप में तत्तत् ग्रन्थालयों में सुरक्षित हैं, किन्तु कितनी हो अधूरी हैं, किन्हीं में कुछ ही सर्ग मिलते हैं। कृष्णकान्त हण्डोकी ने स्वसंपादित और अंग्रेजी में अनुवादित नैषध में तत्तत् टोकाओं की पाण्डुलिपियों में से अपनी टिप्पणियों में यत्र-तत्र उद्धरण दे रखे हैं। म० म० शिवदत्त ने साहित्यविद्याधरी को पाण्डुलिपि जयपुर के राजगुरु श्रीनारायण मट्ट से प्राप्त करके विद्याधर द्वारा किया हुआ प्रत्येक श्लोक में अलंकारविवेचन स्वसंपादित नेषष के पाद-टिप्पण में उद्धृत कर रखा है। इस तरह नैषध पर इतनी अधिक संख्या में टीकाओं के लिखे जाने से सिद्ध होता है कि यह कान्य प्राचीन काल से ही कितना अधिक लोकप्रिय बना चला पा रहा है। वर्तमान काल में नेषध को मल्लिनाथ प्रणीत 'जीवातु' और नारायण प्रपीत 'प्रकाश' इन दोनोंPage Navigation
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