Book Title: Muni Sammelan 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sacheti

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Page 8
________________ र्थात् साधुओंका कर्त्तव्य उच्च तत्वोंका अधिक प्रचार कर अर्हन् परमात्मा श्रीमहावीर भगवानने जगतके उद्धार निमित्त जो रस्ता बताया है उसे जगतवासी जीवोंको दिखानेका है. परंतु दुखके साथ कहना पडता है कि, उस तर्फ अपनी दृष्टि जैसी चाहिये वैसी नहीं रहनेके सबब तथा अंदर अंदरके अमुक मत भिन्न होनेके कारण हम तुम अर्थात् समग्र मुनिवर्ग उपरोक्त स्वकर्तव्यका पालन नहीं कर सके ! __ अपने पूज्य पूर्वर्षियोंने अपनी अगाध और अलौकिक शक्तिसे जो जो महान् कार्य कियेथे उनहीं महर्षियोंकी संतान कहलानेवाले हम तुम उनके जैसे काम करने तो दूर रहे, परंतु जो वेकर गये हैं उसे सम्हालनेकी शक्तिभी हम तुममें नहीं रही ! क्या यह बात लज्जास्पद नहीं है ? जिस समय हजारों हिन्दु बलात्कार स्वधर्मसे भ्रष्ट हो रहेथे, संसारमें आदर्श रूप पवित्र हिन्दुओंके मंदिर तोडे जा रहेथे, ऐसे घोर अत्याचारी राजाओंके राज्यमें भी अपने पूर्वाचार्योंने अपनी आत्मशक्ति और अतुल विद्वत्तासे पवित्र जैनधर्मकी जय पताका सारे भारतवर्ष में उडाईथी ! हम तुम तो प्रतापी ब्रिटिश शाहनशाह नामदार पंचम ज्यॉजके शांतिप्रिय राज्यमें तथा विद्याविलासी श्रीमान् महाराजा सयाजीराव गायकवाड़के जैसे उत्तम राज्योंमेंभी धर्मोन्नति नहीं कर सकते यह देखकर मुझे बडा खेद होता हैं. अपने पूर्वाचार्योंकी अतुल विद्वत्ताका उदाहरण पाटण, खंभायत, जैसलमेर, लींबडी आदिके ज्ञानभंडार सारे संसारको दे रहे हैं. हम तुममें वर्तमान समयके अनुसार नये ग्रंथ बनानेकी शक्ति तो दूर रही; परंतु

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