Book Title: Muni Sammelan 1912
Author(s): Hiralal Sharma
Publisher: Hirachand Sacheti

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Page 24
________________ २३ साथ ममत्वका संबंध हो जायगा तो उस वक्त उसका कहना अवश्यही मानना पडेगा ! अगर न मानेगा तो झट वो फरंट हो जायगा ! जिसका जरा दीर्घदर्शी बन विचार किया जाय तो, हम तुमको तो क्या प्रायः कुल आलमकोही अनुभव सिद्ध हो रहा है कि, आजकल प्रायः कितनेक साधु शेठोंके प्रतिबंधर्मे ऐसे प्रतिबद्ध हुए होंगे कि, शेठका कहना साधुको तो अवश्यही मानना पडता है ! शेठ चाहे साधुका कहना माने या न माने यह उसकी मरजीकी बात है ! तो अब आप लोक ख्याल करें, ऐसी हालत में शेठ गुरु रहे कि साधु ? सत्य है जिन वचन से विपरीताचरणका विपरीत फल होताही है ! इस लिये यदि साधुको सच्चे गुरु बने रहना हो तो शास्त्राज्ञाविरुद्ध एकही स्थानमें रहना छोड, ममत्वको तोड, गुरु बनना चाहते शेठोंसे मुखमोड़, अन्य देशोंके जीवोंपर उपकार बुद्धि जोड, अप्रतिबद्ध विहार में ही हमेशह कटिबद्ध रहना योग्य है; ताकि, धर्मोन्नति के साथ आत्मोन्नतिद्वारा निज कार्यकी भी सिद्धि हो. मैं मानता हूं कि, मेरे इस कथनमें कितनाक अनुचित भान होगा मगर, निष्पक्ष होकर यदि आप विचारेंगे तो उमीद करता हूं कि, अनुचित शद्धके नञ्का आपको अवयही निषेध करना पडेगा. तथापि किसिको दुःखद मालूम होतो, उसकी बाबत मैं मिथ्या दुष्कृत दे, अपना कहना यहांही समाप्त करताहूं. इस प्रस्ताव पर मुनिश्री चतुरविजयजीने अच्छी पुष्टि कीथी बाद सर्वकी सम्मति से यह प्रस्ताव बहाल रखा गया.

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