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द्वितीयाधिवेशन
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बराबर दो बजे सभापति श्रीआचार्य महाराजजी मुनिमंडल सहित आबिराजे श्रावक श्राविका वा अन्य प्रेक्षक गणोंसे स्थान उसी प्रकार भर गया. सभापतिजीकी आज्ञासे मंगलाचरणपूर्वक कार्य प्रारंभ किया गया.
प्रस्ताव तेरवां.
( १३ )
साधुके आचार विचार में किसी प्रकारकी हानि न आवे इस रीतिपर अपने साधुओंको जैनोंसे अतिरिक्त अन्य लोगोभी जाहिर व्याख्यानद्वारा लाभ देनेका रीवाज रखना चाहिये, तथा और किसीका व्याख्यान पबलिकमें जाहिर त रीके होता हो तो उसमें भी, द्रव्यक्षेत्र कालभावको देखकर साधुको जानेके लिये छूट होनी चाहिये. हां इतना जरूर होवे fa, हर दो कार्य में रत्नाधिक ( बड़े ) की आज्ञाविना प्रयत्न न किया जावे.
म निराज श्रीवल्लभविजयजीने इस नियमको पेश कऔरते हुए विवेचन किया कि, महाशयो ! यह नियम जो मैनें आप साहिबोंके समक्ष पेश किया है जमाने के लिहाजसे वह बडेही महत्वका और धर्मको फायदा पहुंचानेवाला है. जैनेतर लोगों में जैनधर्मके तत्वों का प्रचार करनेका