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| उपसंहार ।
इसके अनंतर सभापतिजीका व्याख्यान ( आपकी आज्ञासे मुनिराज श्रीवल्लभविजयजी महाराजने ) जो पढ़कर सुनाया था वह नीचे दर्ज किया जाता है.
सभापतिजीका व्याख्यान.
सान्य मुनिवसे ! आपकी शुभ इच्छासे मुनिसम्मेलनका कार्य निर्विघ्नतापूर्वक समाप्त हुआ, आपके प्रशंसनीय उत्साहको देखकर मुझे बहुतही आनंद हो रहा है ! मुझे पूर्ण आशा है कि, भविष्य में भी आपके सद् उद्योगसे ऐसे ही महत्वशाली और धर्म उन्नतिके जनक कार्य होते रहेंगे !
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महाशय ! आजकल एकताकी बहुत खामी है ! पिता पुत्रके बीच, गुरु शिष्य के अंदर, भाई भाईके मध्यमे, स्त्री पुरुषके दरमियान जिधर देखो उधरही प्रायः मतभेद दिखाई देता है ! परंतु अपने अर्थात् पूज्यपाद श्रीमद्विजयानंद सूरि श्री आत्मारामजी के शिष्य समुदाय में इसका समावेश अभीतक नहीं हुआ, यह बड़ेही हर्षकी बात है ! ऐसी एकता सदैवके लिये बनी रहे इस बातका स्मरण रखना आपका परम कर्तव्य है ! अपने में इस समय कैसा सम्प है. इस प्रश्नका उत्तर यह मुनि - सम्मेलन अच्छी तरहसे दे रहा है !
मुनिवरो ! यह एकतारूप तंत्र बड़ाही प्रभावशाली है ! उन्नतिके प्रशस्त मार्गमें चलने वा चलानेवाले सत्पुरुषोंके लिये इस महामंत्रका अनुष्ठान बड़ाही हितकर है ! इसकी कृपासे